Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
१७२
उपमिति-भव-प्रपंच कथा
उसके व्यवहार को पलट देते हैं। उसके लुच्चे मित्र मैथुन ने तेरी पत्नी मयूरमंजरी के साथ भोग भोगने की दुर्बुद्धि उसमें उत्पन्न की और सागर मित्र ने तेरा रत्नों से भरा हुया जहाज हड़प जाने की प्रेरणा दी। इस प्रकार इन दोनों मित्रों ने उसके मन में दुर्बुद्धि उत्पन्न की जिसके फलस्वरूप धनशेखर ने तुम्हें समुद्र में फेंक दिया। उन पापी-मित्रों से प्रेरित धनशेखर के इस अति अधम कृत्य से समुद्र का देव कुपित हुआ। उसने तुम्हारी रक्षा की और धनशेखर को समुद्र में डुबो दिया। उसके भाग्य से वह मरा नहीं और तैर कर ऊपर आ गया। सागर और मैथुन मित्र अब भी उसे अनेकों देशों में भटका रहे हैं और अनेक प्रकार की विपदायों और दुःखों में फंसा रहे हैं। [३२६-३३६] *
हे भद्र ! चार ज्ञान से युक्त आचार्यश्रेष्ठ उत्तमसूरि के मुखारविन्द से मेरे दुष्ट चरित्र के सम्बन्ध में इतनी स्पष्टता से जानकर हरि राजा के मन में प्राचार्य प्रवर के अपूर्व ज्ञान के प्रति अत्यधिक श्रद्धा जाग्रत हुई । स्वयं विशाल हृदय वाला होने से उसके मन में मेरे दुष्ट चरित्र के प्रति तनिक भी क्रोध नहीं आया, अपितु बेचारा धनशेखर दु:ख-जाल में फंस गया जानकर व्यथित हुआ। सद्बुद्धि और करुणाप्लावित मानस होने से हरि राजा ने पुनः भक्तिपूर्वक प्रणाम कर पूछा-भगवन् ! मेरा मित्र धनशेखर कब इन दोनों पापी मित्रों से छुटकारा पा सकेगा? वह पूर्णतया सुखी कब होगा? यह बतलाने की कृपा करें।
[३३७-३४०] हरि राजा का प्रश्न सहेतुक और स्पष्ट था । उत्तमसूरि ने तुरन्त ही मधुर वाणी में उत्तर दिया-राजन् ! तेरे प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर दे रहा हूँ, अपनी विशद बुद्धि से उसे समझ लेना। शुभ्रचित्त नगर में त्रिभुवन को प्रानन्द देने वाले सततानन्दी सदाशय नामक राजा राज्य करते हैं। इनकी लोक-प्रसिद्ध वरेण्यता नामक महारानी और ब्रह्मरति तथा मुक्तता नाम की दो कन्यायें हैं। वे दोनों कन्यायें अत्यन्त सुन्दर, रूपवान, अनुपम लोचन वाली और गुण की भण्डार हैं। इन दोनों के सम्पूर्ण गुणों का वर्णन करने में कौन समर्थ हो सकता है ? [३४१-३४३]
हे राजेन्द्र ! इन दोनों में से सर्वांगसुन्दरी ब्रह्मरति इतनी प्रतापिनी है कि वह पवित्र साध्वी यदि सानन्द दृष्टि से किसी प्राणी को देख लेती है तो वह प्राणी पवित्र हो जाता है। यही कारण है कि सभी उसे पवित्र' कहकर पुकारते हैं । यह ब्रह्मरति स्थूल प्रानन्द से दूर रहती है, सर्व प्रकार के गुणों की आधार है और बड़ेबड़े योगीजन भी उसे नमस्कार करते हैं। संसार में ऐसा प्रसिद्ध है कि यह राजकन्या अनन्तवीर्य पुंज को प्रदान करने वाली है। संसार में मैथुन के नाम से प्रसिद्ध धनशेखर के अन्तरंग मित्र की यह प्रबल शत्रु है और उसका नाश करने वाली है।
-
* पृष्ठ ५८०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org