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प्रस्ताव ६ : उत्तम-राज्य
पदार्थों की निन्दा न करना और अरुचिकर स्पर्श की गर्हा न करना । प्रत्येक क्षरण अत्यन्त विशुद्ध भाव जल से धोकर आत्मा को स्वच्छ रखना । सर्वदा मन में समस्त प्रकार से संतोष रखना, विचित्र प्रकार का * तप करना, पांच प्रकार का स्वाध्याय करना, सर्वदा अन्तः करण को परमात्मा में स्थापित करना और पांच समिति एवं तीन गुप्ति से पवित्र मार्ग पर निरन्तर चलना । क्षुधा, प्यास आदि २२ परिषहों को सहन करना, देव - मनुष्यादि कृत उपसर्गों को सहन करना, बुद्धि, धैर्य तथा स्मृति के बल में यथाशक्य वृद्धि करना और जिन शुभ योगों की प्राप्ति न हुई हो उन्हें प्राप्त करने का भरसक प्रयत्न करना ।
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उक्त मार्ग का अवलम्बन लेकर प्रवृत्ति करने से अन्तरंग राज्य में प्रवेश हो सकता है, तुझे भी इसी मार्ग पर चलकर राज्य में प्रवेश करना चाहिये । उत्तम राजा बोले- जैसी भगवन् की प्राज्ञा ।
अंतरंग राज्य का मार्ग
इसके पश्चात् सिद्धांत गुरु ने अपना उपदेश आगे चलाया - वत्स ! उपरोक्त पद्धति से अन्तरंग राज्य में प्रवेश करते समय तुम अभ्यास नामक व्यक्ति को अपने अंगरक्षक (विशेष सहायक ) के रूप में अवश्य साथ रखना । ऐसा करने पर चारित्रधर्मराज की सेना का वैराग्य नामक योद्धा भी सहयोगी के रूप में तेरे साथ श्रा जायेगा । इन दोनों अभ्यास और वैराग्य को साथ में लेकर तुम अन्तरंग राज्य में प्रवेश करना | महामोह राजा की सेना के किसी भी व्यक्ति को बाहर मत आने देना । यदि कोई बलात्कारपूर्वक बाहर आने का प्रयत्न करे तो उसे देखते ही मार देना (मोह के उदय को निष्फल कर देना ) । चारित्रधर्मराज की सारी सेना को धैर्य बंधाना और चित्तवृत्ति राज्य भूमि को स्थिर करना । मैत्री, मुदिता, करुणा, और उपेक्षा नामक चार महादेवियों को इस राज्य भूमि में प्रवर्तित करना और उनके प्रसार को अधिकाधिक बढ़ाकर उनसे राज्यपालन में सहायता लेना । जब यह सब सामग्री तैयार हो जाये, तब तू पूर्व दिशा के द्वार से अन्तरंग राज्य में प्रवेश करना । इस अन्तरंग भूमि के उत्तर दिशा की (बायीं ) प्रोर महामोह राजा की सेना के आधारभूत उपयोग में आने वाले ग्राम, नगर, घाटी, नदी, पर्वत आदि हैं । दक्षिण की ( दायीं ) तरफ चारित्रधर्मराज की सेना से सम्बन्धित ग्राम, नगर आदि हैं । इन दोनों सेनाओं की आधारभूमि तो चित्तवृत्ति महाटवी ही है । इस चित्तवृत्ति
वी के अन्त में पश्चिम दिशा में निर्वृत्ति नामक नगरी है । चित्तवृत्ति प्रटवी को पार करने के बाद सामने ही निर्वृत्ति नगरी | जब तू निवृत्ति नगरी में पहुंचेगा तब तेरे सारे मनोरथ पूर्ण होंगे और तुझे अन्तरंग राज्य प्राप्ति का वास्तविक फल प्राप्त होगा, अतः इस नगरी में पहुंचने का तू यथाशक्य पूर्ण प्रयत्न करना । चित्तवृत्ति टवी के मध्यभाग में होकर औदासीन्य नामक एक प्रतिसुगम राजमार्ग जाता
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