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प्रस्ताव ६ : समुद्र से राज्य-सिंहासन
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समुद्र देव का कोप
जिस समुद्र देव ने कुमार को वापस जहाज पर रखा था उसके तेज से दशों दिशाएं बिजली की तरह चमकने लगी और चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश हो गया। उस देव ने अब महा भयंकर रूप धारण कर मेरे सामने आकर गरजते हुए अति कठोर/क्रू र स्वर में कहा---'अरे महापापी ! दुर्बुद्धि ! कुलनाशी ! निर्लज्ज ! मर्यादाहीन ! अधम ! हिंजड़े ! मन से तू ऐसा घोर और अतिरौद्र कर्म कर रहा था फिर भी अभी तक तेरे टुकड़े-टुकड़े क्यों नहीं हो गये ?' ऐसे भयंकर शब्द बोलते हुए अपने होठों को दांतों से दबाकर महा भीषण भृकुटी चढ़ाकर वह मेरे पास आया। उसे देखते ही मैं थर-थर कांपने लगा और उसी अवस्था में मुझे उठाकर वह आकाश में * खड़ा हो गया । [२७३-२७६]
उस समय हरिकुमार मेरे पक्ष में आया। मैंने उसे मारने का प्रयत्न किया था, उसे भूलकर, पूर्व के स्नेह को ध्यान में रखकर उसने अपनी सज्जनता बतलाईं। तुरन्त ही देव को मस्तक झुकाकर उसके पैरों पड़ा और हाथ जोड़कर मेरे लिए प्रार्थना करने लगा हे देव ! आपके पैरों में गिरकर प्रार्थना करने वाले मुझ पर यदि आपकी सच्ची दया है तो आप मेरे मित्र को छोड़ दें । हे देव ! आपने तो मुझे काल के मुह से बचाया है। अब आप मुझ पर इतनी कृपा और करें और मेरे इस प्रिय मित्र को न मारें । देव ! इसके बिना मुझे अपना जीवन बिताना कठिन होगा। इसके बिना मेरा सुख, मेरा धन और मेरा शरीर भी व्यर्थ है, अतः आप कृपा कर किसी भी प्रकार इसे छोड़ दें। [२७७-२८०]
कुमार मेरा समग्र चरित्र जानता था। मैंने उसके विरुद्ध जो भयंकर षड्यन्त्र रचकर उसे समुद्र में धकेला था, उसे भी वह जानता था। फिर भी उस महाभाग्यवान नरश्रेष्ठ ने मेरे प्रति इतना प्रशस्ततम व्यवहार किया था । सच है, “साधु पुरुष किसी भी प्रकार के विकारों से रहित ही होते हैं।" हरिकुमार की इस विचित्र एवं अप्रत्याशित याचना को सुनकर देव मुझ पर अत्यधिक क्रोधित होकर कुमार से कहने लगा-हे महाभाग्यशाली कुमार ! तू तो वास्तव में ही भद्रजन और सरल स्वभावी है, तुझे जिस स्थान पर जाना है वहाँ जा। इस दुष्ट घातकी को तो मैं इसकी दुष्टता का अच्छा फल चखाऊंगा। [२८१-२८३]
यों सज्जन को सज्जनता का उत्तर देकर देव ने आकाश में मुझे प्रबल वेग से घुमाया और फिर जोर से उछाल कर समुद्र में फेंक दिया। मुझे देव ने इतने जोर से फेंका कि उस समय समुद्र में बहुत जोरदार धमाका हुआ और मैं समुद्र की तलहटी में पहुँच गया । अन्धकार से काले समुद्र तल में मैं थोड़ी देर तक नरक के जीव की स्थिति का अनुभव करता रहा और भद्रे ! फिर अपने पाप कर्मों को
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