Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति भव-प्रपंच कथा
मार सहन करनी पड़ी, जिससे मेरे शरीर में अनेक घाव हो गये और दुःखी मन से मुझे सेना की नौकरी भी छोड़नी पड़ी ।
फिर मैंने बैलगाड़ी खरीदी और भाड़े से एक स्थान से दूसरे स्थान पर माल और यात्रियों को ले जाने लगा, पर कुछ ही दिनों के बाद मेरे बैलों को तिलक ( खरवा ) रोग लग गया जिससे मेरे सारे बैल मर गये ।
तब मैंने कुछ गधे खरीदे और उन पर माल लाद कर बनजारे का कार्य प्रारम्भ किया । मेरी इच्छा एक देश से दूसरे देश के साथ व्यापार चलाने की थी । इसी कामना से जब मैंने बनजारों के समूह को इकट्ठा कर व्यापार करना प्रारम्भ किया तब चोरों ने हमारे समूह पर धावा बोला और हमारा सर्वस्व लूटकर हमारे व्यापार को चौपट कर दिया ।
अपनी निष्फलताओं से तंग आकर अन्त में मैंने किसी गृहस्थ के घर में नौकर का कार्य स्वीकार किया और अनेक प्रकार से उसकी सेवा करने लगा, पर मेरी सेवा के बदले में मेरा मालिक मुझ पर कुपित होता रहता और निश्चित वेतन भी नहीं देता । तंग आकर मुझे यह नौकरी भी छोड़ देनी पड़ी ।
हे सुमुखि ! फिर मैंने किसी व्यापारी के जहाज पर नौकरी की । परदेश के साथ व्यापार करने के लिए जहाजों में माल भरा गया और वे जहाज परदेश जाने के लिए समुद्र में चलने लगे, पर मेरे कर्म- संयोग से वे जहाज तूफान में घिर गये और समुद्र में डूब गये । जहाजों में भरी हुई व्यापार की सब वस्तुएं भी समुद्रतल में समा गईं । मेरे हाथ में एक लकड़ी का तख्ता श्रा गया था जिसे पकड़ कर मैं बड़ी कठिनाई से किनारे लगा, और अपने प्राण बचा सका ।
तख्ते के साथ तैरता तैरता में रोधनद्वीप के किनारे पर लगा था । मैंने सुन रखा था कि इस द्वीप में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ जमीन में से निकलते हैं, अतः बहुत परिश्रम कर मैं जमीन खोदने लगा, पर भाग्य की विडम्बना थी कि मेरे हाथ धूल के सिवाय कुछ भी नहीं लगा ।
इसके पश्चात् मैं एक राजा से मिला और उसकी आज्ञा लेकर मैंने रसायनों से सोना, चांदी आदि बनाने के धातुवाद के कार्य द्वारा धन कमाने का प्रयत्न किया ! पत्थरों पर, पेड़ों की जड़ों पर, मिट्टी पर पारे को शोध कर कई प्रकार के प्रयोग किये और इन प्रयोगों के पीछे अपने जीवन का अमूल्य समय नष्ट किया, पर मेरे हाथ तो सोने के बदले नमक ही लगा । मुझे किसी प्रकार का लाभ नहीं हुआ और परिश्रम भी व्यर्थ गया ।
फिर, धन कमाने की इच्छा से द्यूतकला सीखकर मैं अनेक प्रकार का जुआ खेलने लगा, पर उसमें भी जुत्रारियों ने मुझे जीत लिया और मुझे बांधकर इतना मारा कि मेरी हड्डी -पसली एक हो गई । बड़ी कठिनता से मैं जुआरियों के फंदे से
छूट 1
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