Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव प्रपंच कथा
स्थान पर रखे हुए हीरे मोती आदि मूल्यवान रत्न भी मुझे बतला दिये। सेठ को धन पर अधिक प्रासक्ति थी इसलिए वह दुकान पर ही सोता था और मुझे भी अपने साथ ही सुलाता था।
एक दिन संध्या का भोजन कर हम घर में बैठे थे कि सरल सेठ के प्रिय मित्र बन्धुल के घर से निमन्त्रण पाया कि आज उसके यहाँ पुत्र-प्राप्ति की उपलब्धि में छठी का रात्रि जागरण है और उसमें सेठजी की उपस्थिति आवश्यक है। सेठ ने मुझ से कहा--पुत्र वामदेव ! आज मुझे बन्धुल के यहाँ जाना ही पड़ेगा, तुम दुकान जागो और वहाँ सावधानी से सोना ।
_ मैंने कहा-पिताजी! आपके बिना मुझे अकेले दुकान जाना अच्छा नहीं लगता। आज तो मैं घर पर ही माताजी के पास रहँगा। सेठ ने सोचा कि पुत्र का माता के प्रति स्नेह अधिक है इसलिए मुझे अपनी इच्छानुसार करने को कहकर सरल सेठ बन्धुल के यहाँ चला गया।
रात्रि के समय मेरे शरीर में स्थित स्तेय जागत हुआ और उसके वशीभूत मेरे मन में सेठ की दुकान में छुपाया हुआ अमूल्य धन चुरा लेने का विचार हुआ। अर्ध रात्रि को उठकर मैं दुकान पर गया। मुझे दुकान खोलते हुए चौकीदारों ने दूर से ही देखकर पहचान लिया था। मैं अभी नया ही था, इसलिये उन्हें थोड़ी शंका हुई कि यह भाई मध्यरात्रि में दुकान क्यों खोल रहा है ? उन्होंने मुझे कुछ नहीं पूछा, पर गुप्त रूप से मेरी गतिविधियों पर पैनी दृष्टि रखी । सेठ ने मूल्यवान रत्न दुकान में जहाँ छिपा रखे थे, वहाँ से उन्हें निकाल कर दुकान के पीछे की गली में जमीन खोदकर मैंने उन्हें छिपा दिया । इतना सब करते-करते प्रातःकाल हो गया, अत: मैंने हो हल्ला मचाया कि, अरे लोगों ! दौड़ो, सेठ के यहाँ चोरी हो गई है ।
नगर के लोग इकट्ठ हो गये, सेठजी भी आ पहुँचे । चौकीदार भी आये। बाजार में कोलाहल मच गया। सेठ ने मुझसे पूछा-पुत्र वामदेव ! क्या बात है ? यह सब भीड़ इकट्ठी क्यों हो रही है ?
मैंने कहा-पिताजी ! हम मर गये । रात को दुकान में चोरी हो गई। ऐसा कहकर मैंने सेठजी को खुली दुकान और भूमि में रत्न रखने के गुप्त स्थान पर हुए खड्डे को दिखाया। __ सेठ ने पूछा-- पुत्र वामदेव ! तुझे इसकी खबर कैसे और कब हुई ?
मैंने कहा --पिताजी, आप तो मित्र के यहाँ चले गये, मैं अकेला रह गया। आपके विरह में मुझे नींद नहीं आई, सारी रात बिस्तर पर लोटता रहा । जब थोड़ी रात शेष रह गई तो मेरे मन में विचार आया कि दुकान का बिस्तर पिताजी के स्पर्श से बहुत पवित्र हो चुका है, उस पर सोने से शायद मुझे नींद आ जायेगी। अन्य स्थान पर तो आयेगी नहीं। यही सोचकर मैं दुकान पर आया और देखा कि यहाँ चोरी हो गई है तब मैंने हल्ला मचाया।
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