Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ६ : मैथुन और यौवन के साथ मैत्री
यौवन और मैथुन के साथ मैत्री
भद्रे ! मैं जब रत्नद्वीप में था तब एक और अप्रत्याशित घटना घटित हुई, वह सुनाता हूँ, सुनो। तुम्हें स्मरण होगा कि कर्मपरिणाम महाराजा की त्रिभुवन में प्रसिद्ध कालपरिणति नामक महारानी है। उसके अत्यन्त रसिक दो विशेष दास हैं जिनके नाम यौवन और मैथुन हैं । उन दोनों में एक बार निम्न वार्तालाप हुआ। [१९४-१९६]
___ यौवन-मित्र मैथुन ! संसारी जीव इस समय अपने वश में है। तुम्हारे ध्यान में होगा कि इस समय वह धनशेखर के नाम और रूप से जाना जाता है। मुझे लग रहा है कि अब तुम्हारा भी उसके पास जाने का समय आ गया है। अभी अच्छा अवसर है, अतः चलो हम उसके पास चलें।
[१९७-१९८] ___मैथन-भाई यौवन ! यदि ऐसी बात है तो वह धनशेखर जहाँ पर है वहाँ मुझे ले चल और उसके साथ मेरा परिचय करवादे । मुझे तेरे साथ चलने में बहुत आनन्द आयेगा।
[१६६] । ___ यौवन-मित्र ! मैं पहले भी उसके पास गया था, उस समय उसने मेरा योग्य सन्मान किया था और मेरी सेवना भी की थी। मैं अवश्य ही तुझे उसके पास ले चलूगा और उससे तेरा परिचय करा दूंगा। यह धनशेखर ऐसी प्रकृति का है कि इसके साथ सम्बन्ध जोड़ने में आनन्द आयेगा।
[२००] ___इस प्रकार बातचीत कर वे दोनों अन्तरंग मित्र यौवन और मैथुन मेरे पास आ पहुँचे। फिर यौवन मुझसे बोला-भाई धनशेखर ! आज मैं अपने साथ अत्यन्त प्र मालु एक मित्र को लाया हूँ। यह बहुत अच्छा है और मित्रता करने योग्य है । मेरे समान ही समझ कर तुम इसके साथ मित्रता करो। मेरी उपस्थिति में इस मित्र के आने पर तुझे बहुत ही आनन्द प्राप्त होगा। मेरा यह मित्र बहुत सुख देने वाला और लहर में मस्त करने वाला है । अथवा बछड़े वाली दुधारू गाय के इतने अधिक गुण गाने की आवश्यकता ही क्या है ?
[२०१-२०३] मित्र यौवन, जिसे मैं पहले से ही जानता था, उपरोक्त बात कह कर चुप हो गया। हे भद्रे ! वास्तविकता तो यह थी कि ये दोनों मित्र महाभयंकर अनन्त दुःखों के खड्डे में धकेलने में कारणभूत थे, परन्तु मोहराजा के दोष से बँधा हुआ विपरीत विचारों से प्रतिबद्ध मैं उस समय यह नहीं समझ सका । सागर के साथ मेरी मित्रता करवाकर भाग्य चुप नहीं हुआ, मेरी विडम्बना कुछ बाकी थी उसे पूर्ण करने के लिए अब मेरी मैत्री मैथुन से करवाई गई। कहावत है कि “जब ऊंट भार से दबकर मुख से बूम मार रहा हो तब भी उस समय यदि अधिक भार उसकी पीठ पर न समा सके तो थोड़ा बोझ उसके गले में भी बांध दिया जाता है।
[२०४-२०६]
* पृष्ठ ५७१
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