Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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वामदेव के भविष्य की पृच्छा
दीक्षा के समय विमल ने मुझे समुपस्थित न देखकर बहुत ढुंढ़वाया, पर जब मेरा कोई पता न लगा तब उसे चिन्ता हुई और उसने बुधाचार्य से पूछा- भगवन् ! वामदेव कहाँ गया है ? और किस कारण से गया है ?
गुरु महाराज ने अपने ज्ञान से उपयोग लगाकर, मेरा समस्त चरित्र जानकर कहा- वह इस डर से भाग गया है कि कहीं तुम उसे आग्रह कर बलपूर्वक दीक्षा न दिलवा दो । *
उपमिति भव-प्रपंच कथा
इस पर विमल ने गुरु महाराज से पूछा - भगवन् ! आपके अमृतोपम वचन सुनकर वह मेरा मित्र ऐसी चेष्टा क्यों करता है ? क्या वह भव्य जीव नहीं है ?
[६५४-६५७ ]
बुधाचार्य - कुमार ! वामदेव प्रभव्य तो नहीं, पर अभी उसका व्यवहार किसी विशेष कारण से ऐसा बना हुआ है। इसकी एक बहुलिका नाम की अंतरंग बहिन है, जो महा भयंकर योगिनी है । वह शरीर के भीतर रहकर अपनी प्रवृत्ति करती है । वामदेव को उस पर बहुत स्नेह है । फिर इसका स्तेय नामक एक अंतरंग भाई भी है, उस पर भी इसका बहुत राग है । ये दोनों वामदेव को अपने वश में करके रखते हैं । इन दोनों के वशीभूत होकर ही इसने अभी ऐसा व्यवहार किया है । पहले भी इसने इन दोनों के कहने पर ही रत्नों की चोरी की थी । प्रकृति से तो वामदेव सुन्दर ही है, किन्तु अभी इन दोनों के प्रभाव के कारण ही वह ऐसी विपरीत प्रवृत्ति कर रहा है ।
[६५८-६६१] विमल - गुरुदेव ! वह बेचारा इन दोनों दुष्ट अन्तरंग भाई-बहिनों से कब मुक्त होगा ? यह तो बताइये । [६६२]
I
बुधाचार्य -- विमल ! बहुत समय पश्चात् इसका इनसे छुटकारा होगा । वह कैसे होगा, सुनो । विशदमानस नगर में शुभाभिसंधि नामक राजा राज्य करता है, जिसके शुद्धता और पापभीरुता नामक दो अतिशय निर्मल श्राचार वाली रानियाँ हैं । शुद्धता के एक ऋजुता नामक पुत्री है और पापभीरुता के चौर्यता नामक पुत्री है । ये दोनों कन्यायें पढ़ी-लिखी और सुन्दर हैं । इनमें से ऋजुता अत्यन्त सरल और साधु जीवन वाली है । यह सभी को सुख देने वाली है और हे भाग्यशाली ! तुम्हारे लोगों की वह जानी पहचानी है। राजा की दूसरी अचौर्यता नामक कन्या भी स्पृहारहित, शिष्ट पुरुषों की प्रिय और सर्वांगसुन्दरी है तथा इसे भी तुम्हारे जैसे पहचानते हैं । जब तुम्हारा मित्र वामदेव इन दोनों भाग्यशाली कन्याओं से बिवाह करेगा तब स्तेय और बहुलिका उस पर अपना किसी प्रकार का प्रभाव नहीं दिखा सकेंगी, क्योंकि ऋजुता और अचौर्यता, बहुलिका और स्तेय की प्रकृति से ही विरोधिनी हैं । अतः दोनों एक साथ नहीं रह सकती । [ जहाँ ऋजुता होगी वहाँ
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