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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
वह चित्रपट मैंने उसे दिया और उसके मुख पर कैसे भाव आते हैं, यह देखती रही । मुझे लगा कि इसके मन में भी मंजरी के प्रति प्रेमाभिलाषा जाग्रत हुई है। फलतः मेरा कार्य पूर्ण (सिद्ध) हो गया। तत्पश्चात् महारानी को यह संवाद देने तथा इस सम्बन्ध में और क्या करना चाहिये यह पूछने के लिये मैं तुरन्त ही वहाँ से लौट आई । मैंने महादेवी से कहा---'हरिकुमार तो अब मेरी मुट्ठी में है, अब इस विषय में और क्या करना चाहिये वह बतायो।' शुभ संवाद सुनकर महारानी बहुत प्रसन्न हुई और अपनी पुत्री से कहने लगी--'पुत्रि मयूरमंजरी ! भगवती तपस्विनी ने जो कुछ कहा वह तू ने सुना या नहीं ? अब तुझो अपना * हृदयवल्लभ अवश्य मिलेगा।' मयूरमंजरी ने बात सुनी पर उसे पूर्ण विश्वास नहीं हुआ, अतः वह लजाती हुई बोली- 'यो माताजी ! क्यों बिना सिर-पैर की बात कर मुझे ठग रही हैं ।' महारानी समझ गई कि मयूरमंजरी को अभी विश्वास नहीं हुआ है। अब समय नष्ट करने में कुछ सार नहीं है ऐसा विचार कर वह शीघ्र ही महाराजा नीलकण्ठ के पास गई और उन्हें सब समाचारों से अवगत कराया। मयूरमंजरी के साथ हरिकुमार का सम्बन्ध हो यह बात महाराजा को भी पसन्द आई। इस विवाहसम्बन्ध को बिठाने और कुमार को यहाँ लाने के लिये ही राजा-रानी ने मुझे अभीअभी भेजा । हे भाई ! यही चित्रपट का वृत्तान्त है । चित्रालेखित राजकन्या मयूरमंजरी ही है और मैं इसी प्रसंग में प्रयत्नशील हूँ। मयूरमंजरी पालेखित चित्रपट-द्वय
फिर मैंने तपस्विनी से पूछा-देवि ! आपने हाथ में क्या ले रखा है ?
उत्तर में तपस्विनी बन्धुला ने कहा--मंजरी के हाथों से चित्रित ये दो चित्र हैं।
मैंने पूछा- यह तो ठीक है, पर चित्र साथ में लाने का क्या प्रयोजन है ?
तपस्विनी ने स्पष्ट उत्तर दिया--संभव है कुमार को मेरे वचन पर विश्वास न हो तो उसकी शंका को दूर करने के लिये मंजरी के मनोभावों को प्रकट करने वाले ये चित्र हैं। अर्थात् कुमार की शंका को दूर करने के लिये ही मैं इन्हें साथ लायी हूँ। यदि आवश्यकता होगी तो उनका उपयोग करूंगी।
___मैंने कहा- भगवती देवी ने सब काम बहुत ही सुन्दर किया है। आपने अपनी व्यवस्था से कुमार को जीवन दान दिया है ।
फिर मैं तपस्विनी के साथ उद्यान में हरिकुमार के पास आया। तपस्विनी बन्धुला ने इस विषय में राजाज्ञा को कह सुनाया। तपस्विनी ने मुझे जो विस्तृत वर्णन सुनाया था वह भी मैंने कुमार को सुना दिया, किन्तु उसे फिर भी विश्वास नहीं हुआ। उसे लगा कि उसकी चिन्ता दूर करने के लिये ही यह सब कृत्रिम नाटक
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