Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
पित्त का संचय होता है, शरद ऋतु में उसका प्रकोप होता है और हेमन्त में वह शान्त हो जाता है। शिशिर ऋतु में कफ का संचय होता है, वसन्त में उसका प्रकोप बढ़ता है और ग्रीष्म में वह शान्त हो जाता है। [१५८-१५६]
हेमन्त और शिशिर ऋतु प्रायः समान ही है, पर शिशिर में हेमन्त की अपेक्षा कुछ ठण्ड अधिक बढ़ जाती है, बादल रहते हैं और वर्षा की ठण्डी और शुष्क हवा चलती है जो आदानकारी है । [१६०]
यह सब मैंने मन में पूर्ण रूप से सोच-समझ लिया है, पर इस विषय में अधिक विचार करने से क्या लाभ ? मेरे विचार से तो कुमार को अजीर्ण का रोग ही है।
अहा ! यह कपोल अपने को आयुर्वेद में बहुत पारंगत समझता है, पर वास्तव में यह कितना मूर्ख है । ऐसा सोचकर कुमार थोड़ा हँसा । उसकी हँसी को देखकर सभी मित्रों ने एक साथ पूछा-मित्र ! क्या हुआ ? आप क्यों हँसे ?
उत्तर में कुमार बोला-मैं कपोल की मूर्खता पर सोच रहा था। मैंने अपनी हँसी को रोकने का बहुत प्रयत्न किया, पर मैं हँसी को रोकने में सफल न हो सका।
पद्मकेसर ने समयानुसार चुटकी ली, कुमार ! आपकी बड़ी कृपा हुई। हमें जो काम सिद्ध करना था वह पूर्ण रूप से सिद्ध हो गया। कुमार ! आपके मन के आन्तरिक ताप की शान्ति के लिये और विनोद के लिये ही हम सब ने मिलकर यह हास्य-विनोद और भाषण प्रारम्भ किया था। अर्थात् हम सब कोई गम्भीर वार्ता नहीं कर रहे थे । [१६१]
कहा भी है कि___ चित्तोद्व गनिरासार्थ, सुहृदां तोषवृद्धये ।
तज्ज्ञाः प्रहसनं दिव्यं, कुर्वन्त्येव विचक्षणाः ।। [१६२] मित्रों के चित्त के उद्वेग को दूर करने और उसकी सन्तोष एवं शान्ति वृद्धि के लिये विचक्षण विद्वान् उच्च प्रकार का हास्य-विनोद करते ही हैं।
वस्तुतः आपके विकार को समूल नष्ट करने की औषध तो वह सन्यासिनी ही जानती है और वह ही इसको सम्पादित (पूर्ण) कर सकती है, अन्य कोई भी आपकी सहायता कर सके ऐसा नहीं लगता । अतः, हे कुमार ! उसको ढुढ़वाकर शीघ्र ही बुलवा लें, यही अच्छा है। अब व्यर्थ का विलम्ब करने से क्या लाभ ?
कुमार-भाई पद्मकेसर ! यदि तू जानता है तो फिर अपनी इच्छानुसार उपाय कर।
पद्मकेसर-मित्र ! तो फिर उस तपस्विनी को खोजकर बुलाने किसे भेजू ?
कुमार को अन्य मित्रों पर विश्वास नहीं था, अतः उसने उस तपस्विनी को बुलाने के लिये मेरा (धनशेखर का) नाम प्रस्तावित किया ।
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