________________
प्रस्ताव ६ : हरिकुमार को विनोद गोष्ठी
१४३
साधारण तौर पर इसका अर्थ होगा-जो दूसरों की निन्दा नहीं करता, जो साम्यभाव वाला और क्रोध रहित है, जो स्वयं अभय है और जो प्राणियों की रक्षा करता है, ........................... ।
श्लोक के तीन पद सुनते ही कुमार ने चौथे चरण की पूर्ति तत्काल ही करदी-“स नरो गोत्रभूषण: ।”
उत्तर सुनकर कपोल ने कहा- वाह भाई । मेरे जैसे को तो ऐसी पूर्ति करने में बहुत समय लग जाय । मुझे तो श्लोक के तीन पद तैयार करने में भी बहुत समय लगा, फिर भी कुमार ने तत्काल पादपूर्ति कर उत्तर दे दिया। अहो ! कुमार का बुद्धि-वैभव तो अप्रतिहत शक्तिसंपन्न है, असाधारण है। वस्तुतः कुमार तो बुद्धिनिधान हैं । सब मित्र-मण्डली ने स्वीकार किया कि कपोल ने जो बात कही है वह निःसंदेह सत्य है।
उपरोक्त श्लोक के तीन पदों में चौथा पद जोड़ने पर पूरे श्लोक का यह अर्थ निकलता है कि
__ जो प्राणी दूसरों को निन्दा नहीं करता, जो समान स्थिति वाला है और क्रोध नहीं करता, जो स्वयं भय रहित है और अन्य प्राणियों की रक्षा करता है, ऐसा मनुष्य कुल का आभूषण है ।
इस श्लोक में भी शब्दालंकार है । चौथे पद का अन्तिम शब्द 'भूषणः' के सभी अक्षर प्रथम के तीन पदों में मिल जाते हैं ।
इस प्रकार जितने समय तक प्रश्नोत्तर गोष्ठी होती रही तब तक हरिकुमार का ध्यान चित्रलिखित कन्या से हट गया, उतने समय तक वह उसे भूल गया। [१३२]
संयोगवश उसी समय उस स्थान पर एक कबूतर और कबूतरी प्रेम-लीला कर रहे थे। कबूतर का कबूतरी को चूमना, उसके चारों तरफ चक्कर काटना, उसके साथ मस्ती करना, इत्यादि देखते ही कुमार को बह विस्मृत हुई चित्रकन्या पुनः स्मृति में आ गई । [१३३]
हरिकुमार का ध्यान पुनः चित्र की ओर चला गया और मित्रों की बातचीत से ध्यान हट गया। फिर तो पवन के झकोरों से जैसे दीपक की स्थिति होती है, पानी के कुण्ड में शिला पड़ने से पानी के सतह की जो स्थिति होती है, कुटुम्ब के भरण-पोषण की चिन्ता में दरिद्रों के मन की जैसी स्थिति होती है, दूसरों से पराभव पाकर अभिमानी मनुष्य की जैसी मनःस्थिति होती है और अविरति सम्यक दृष्टि की जैसे संसार के भय से मनःस्थिति होती है वैसी ही स्थिति कुमार के मन की हो गई । स्मृतिपटल पर बार-बार कन्या का चित्र उभरने लगा और कुमार इधर-उधर झूमने लगा । जैसे एक योगी बाह्य वस्तु के व्याक्षेप से मुक्त होकर अपने ध्येय के प्रति तन्मय होकर ध्यानारूढ़ हो जाता है वैसे ही कुमार को बाह्य विषयों For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International