Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ५ : कथा का उपनय एवं कथा का शेष भाग
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है । अनन्त आनन्द, महा ऐश्वर्य और वास्तविक सुख के हेतुभूत कुटुम्ब से दूर हटाया हुमा प्राणी दुःख समूह से भरे हुए भव ग्राम में फंसा रहता है, फिर भी वह राग-द्वष आदि अपने शत्रुओं को ही अपना मित्र मानता रहता है। बठरगुरु की भिक्षा-प्राप्ति के समान ही थोड़े से विषय सुख की प्राप्ति होते ही यह मूर्ख प्राणी लहर में पाकर हँसने, नाचने और तालियाँ पीटने लगता है । हे राजन् ! यह संसारी प्राणी तत्त्व को न समझकर दुःखसमुद्र में डूबा हुआ होने पर भी अपने को सुखी समझता है । यही वस्तुस्थिति है। [३२१-३३५] दुःखों से मुक्ति कैसे हो?
__ आचार्य द्वारा बठर-कथा का दार्टान्तिक उपनय (रहस्य) सुनकर धवल राजा ने पूछा-भगवन् ! आपके कथनानुसार जब हम सब पागल, सदा सन्निपातग्रस्त और अति विषम रागादि तस्करों से घिरे हुए हैं जिन्होंने हमारे शिवमन्दिर रूपी रत्नपूरित स्वरूप पर अधिकार कर रखा है और हमारे क्षमादि स्वाभाविक गुणयुक्त भाव-कुटुम्ब का नाश कर दिया है, जिससे हम इस भव ग्राम रूपी संसार में भटक रहे हैं, जहाँ भोग की भीख भी मिलना अति दुर्लभ है, फिर भी उसके अंश मात्र की प्राप्ति से संतुष्ट हो जाते हैं और परमार्थ से दुःखसागर में डूबे हुए हैं तब हमारा इस परिस्थिति से उद्धार कैसे होगा ?
बुधाचार्य--राजेन्द्र ! * अब मैं तुम्हें बठरगुरु की कथा का शेष भाग सुनाता हूँ। उसमें बठर का उद्धार जिस प्रकार हुआ उसी प्रकार तुम्हारा भी भवविडम्बना से उद्धार हो सकेगा।
धवल राजा -- भगवन् ! उसके बाद बठरगुरु का क्या हुआ ?
आचार्य बोले :कथा का शेष भाग
राजन ! बठरगुरु को निरन्तर धर्त तस्करों द्वारा दिये गये त्रास को देखकर किसी एक शिव-भक्त को उस पर अत्यधिक दया आ गई। उसने सोचा कि वास्तव में साधन-सम्पन्न किन्तु भोला बठर इस प्रकार पीड़ित हो यह तो ठीक नहीं है। इसे इस भयंकर दुःख से मुक्त करने का कोई न कोई उपाय सोचना चाहिये। सोचतेसोचते शिव-भक्त किसी वैद्यराज के पास गया और उसे बठर का सारा वृत्तान्त सुनाकर उससे उसकी दुःखमुक्ति का उपाय पूछा । वैद्य ने उसे जो उपाय बतलाया, उसे शिव-भक्त ने अच्छी तरह समझ लिया। वैद्य द्वारा बताये गये उपाय के अनुसार सामग्री लेकर वह रात में शिव मन्दिर में गया। उसने जब देखा कि बहुत समय तक बठर को नचाते-नचाते थक कर धूर्त सो गये हैं तब भक्त ने अवसर देखकर मन्दिर में जाकर दीपक जलाया। प्रकाश होते ही बठर ने भक्त को देखा। उस समय उस में तथाभव्यता (योग्यता) होने से एवं अत्यधिक थकान से श्रान्त होने के कारण बठर ने कहा--"मैं बहुत थक गया हूँ, मुझे बहुत प्यास लगी है, थोड़ा पानी पिला • पृष्ठ ५२३
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