Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
सबोध मंत्री की बात सुनकर चारित्रधर्मराज ने सभा में व्याप्त क्षोभ को रोकने के लिये समग्र राजारों की तरफ अपनी दृष्टि घुमाई, जिसे देखकर विचक्षण राजा और यौद्धा मौन हो गये। [४६८]
___ चारित्रधर्मराज ने सभी सभासदों से कहा-राजाओं! जो घटना घटितहुई है वह तो आपने सुनी ही है और समझी भी है। अब हमको इस विषय में क्या करना चाहिये ? आपके मन में जो विचार हों, उन्हें प्रकट करें। [४६६] सभासदों का आक्रोश
___ महाराज का प्रश्न सुनकर वहाँ बैठे सत्य, शौच, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य आदि राजाओं के मन में युद्ध करने का उत्साह बढ़ा और उन्होंने एक आवाज में कहाअपने योद्धा संयम की उन्होंने ऐसी दुर्दशा की उसे क्या चुपचाप सहन कर लें ? क्या अभी भी हमें प्रतीक्षा करनी चाहिये ? हे देव ! अपराध करने वाले को क्षमा करने से यदि अपराध की क्षमा ही अपथ्य सेवन के समान परिणत होती हो अर्थात् उनकी अपराध वृत्ति में बढ़ोतरी होती हो तो उसको जड़मूल से नष्ट कर देना ही परमौषध है। जब तक पापात्मा महामोह आदि भयंकर शत्रुओं को मार कर न भगाया जायगा तब तक हम जैसों को सुख की गन्ध भी कैसे मिलेगी ? परन्तु जब तक इस सम्बन्ध में देवचरणों की (आपकी) प्रबल इच्छा नहीं होगी * तब तक इन दुरात्माओं का नाश नहीं होगा। हे स्वामिन् ! देखिये, आपका एक-एक योद्धा ऐसा वीर है कि भयंकर समरांगण में अकेला भी सम्पूर्ण शत्रु सेना को पराजित कर भगा सकता है, जैसे अकेला केशरीसिंह मृगों की पूरी टोली को भगा सकता है। यदि आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा बीच में बाधक न होती तो इस शत्रु सेना को ज्वार भाटा से क्षुभित समुद्र की लहरों की भांति हमारे योद्धा क्षणमात्र में नष्ट कर देते ।
[५००-५०६] सेनापति का प्राक्रोश
मोहराजा आदि के विरुद्ध एकमत से संघर्ष करने को उद्यत सभी महारथी राजा महाराजा के समक्ष खड़े हो गये। उनके शरीर पर युद्ध-लोलुपता (रण की खुजली) के चिह्न देखकर महाराज ने अपनी दृष्टि उनकी ओर घुमाई तो वे सब महारथी, दुर्दान्त मदोन्मत्त हाथी को विदीर्ण करने में समर्थ सिंह जैसे दिखाई देने लगे। विचारने योग्य महत्वपूर्ण प्रसंग होने से चारित्रधर्मराज अपने मंत्री सद्बोध और सेनापति सम्यग्दर्शन के साथ गुप्त मन्त्रणा करने हेतु मन्त्रणा कक्ष में चले गये । हे पिताजी ! मौसी मार्गानुसारिता भी उस समय मेरे साथ अन्तर्ध्यान होकर उस कक्ष में प्रविष्ट हो गई। महाराज चारित्रधर्मराज ने अपने मंत्री और सेनापति से पूछा कि, अब हमें क्या करना चाहिये ? इस पर सेनापति सम्यग्दर्शन ने कहादेव ! हमारे महारथी योद्धा सत्य, शौच आदि ने जैसा कहा वैसा ही करने का समय * पृष्ठ ५३४
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