Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
तदनन्तर बुधसूरि ने रत्नचूड को जो गुप्त संदेश दिया था उसे उसने विमल के कान के पास अपना मुंह लेजाकर धीरे से सुना दिया।* हे अगृहीतसंकेता ! उसने जो सन्देश विमल को सुनाया वह मैं नहीं सुन सका । गुप्त संदेश सुनाने के बाद सब लोग सुन सके इस प्रकार रत्नचूड ने विमल से कहा- इसी कारण से मुझे यहाँ पाने में देरी हुई और मैं बुधसूरि को अपने साथ नहीं ला सका। उत्तर में विमल बोलाभाई ! आपने बहुत अच्छा किया।
फिर मैं, विमल, रत्नचूड, आम्रमञ्जरी और अन्य सभी विद्याधर नगर में आये । रत्नचूड दो-तीन दिन तक वहाँ आनन्द पूर्वक रहा, फिर वापिस अपने नगर को लौट गया ।
११. प्रतिबोध-योजना
विमलकुमार का विरक्ति भाव
कुशल भावों का अत्यधिक अभ्यस्त होने से, कर्मजाल के पूर्णरूप से निर्बल हो जाने से, ज्ञान की अत्यधिक विशुद्धि होने से, इन्दिय सुखों को त्याज्य मान लेने से, प्रशान्त भाव को धारण कर लेने से, किसी भी प्रकार का दुश्चरित्र या दुर्व्यवहार विद्यमान न होने से, आत्मवीर्य प्रबल हो जाने से और परमपद प्राप्ति का समय निकट
आ जाने से विमलकुमार राज्य-लक्ष्मी में अनुरक्त नहीं हो रहा था । ऐसी स्थिति में वह विमलकुमार शरीर-संस्कार (शरीर की किसी प्रकार की शुश्रूषा या विभूषा) नहीं करता था। किसी प्रकार के लीला-नाटक आदि की रचना नहीं करवाता था। ग्राम्यधर्म (लोक प्रचलित साधारण धर्म) की तो उसे रंच मात्र भी अभिलाषा नहीं थी। वह तो केवल इस संसार रूपी जेल से विरक्त रहकर सदा शुभ ध्यान में लीन रहते हुए अपना समय व्यतीत कर रहा था। विमल के माता-पिता का चिन्तन
विमल को विरक्त देखकर उसकी माता कमलसुन्दरी और पिता धवल राजा को चिन्ता हुई कि, अरे ! यह विमल सुन्दर स्वस्थ, मनोहारी तरुण होने पर भी, कुबेर के वैभव को भी तिरस्कृत करने योग्य वैभवपति होने पर भी वह देवांगनाओं
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