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प्रस्ताव ५ : प्रतिबोध-योजना
डंडे से बंधी दो तुम्बियें थीं और ऊन से बनी एक पीछी लटक रही थी। हे स्वामिन् ! जब हमने इसे देखा और इसका अत्यन्त बीभत्स रूप हमें दिखाई दिया तब हमें लगा कि यह समस्त दुःखों का भण्डार, दरिद्रता की अंतिम स्थिति में फंसा हुआ और वास्तव में दया का पात्र है । हे नाथ ! इसके बीभत्स रूप को देखकर हमें लगा कि यह इसी संसार में नारकीय जीव है, जो यहीं नरक की पीड़ा भोग रहा है। [८४-८५] ऐसे प्रत्यक्ष नारकीय प्राणी को देखकर हमने उससे कहा-'हे भद्र ! इस भरी दोपहरी में तू क्यों भटक रहा है ? हे भाई! ठंडी छाया में थोड़ा बैठता क्यों नहीं ?' तब इसने उत्तर दिया-- 'भाइयों! मैं स्वतंत्र नहीं हूँ। मेरे गुरु की आज्ञा से भटक रहा हूँ। मुझे उनकी आज्ञा का अनुसरण करना ही पड़ता है। हम सोचने लगे कि, अरे ! यह तो बेचारा पराधीन है। अहो ! इसके महान दुःख के कारणों पर विचार करने से मन कुठित हो जाता है। एक तो यह ऐसी अत्यंत खेद-जनक स्थिति में है और फिर पराधीन भी है। पुनः हमने इससे पूछा-'भाई ! यदि तु तेरे गुरु की आज्ञा इसी प्रकार सर्वदा मानता रहेगा तो उससे तुझे क्या लाभ होगा?' हमारे प्रश्न के उत्तर में इसने कहा --- 'भाइयों ! मेरे साथ आठ बड़े-बड़े यम जैसे भयंकर ऋणदाता लगे हुए हैं । वे दया-रहित हैं और मुझे बहुत दुःख देते हैं। मेरे गुरु उनको ग्रन्थीदान देकर (ऋण को चका कर) मुझे उनके त्रास से मुक्त करेंगे।' इस दु:खियारे का ऐसा विचित्र उत्तर सुनकर हम विचार में पड़ गये । 'अहो! यह तो बहुत दुःख की बात है । यह तो बहुत पीड़ित लगता है। इसके दुःख का कारण बहुत ही कष्टदायी है । ऐसी अत्यन्त अधम स्थिति में भी दान लेकर अपना ऋण चुकाने की इसे दुराशा है । हद हो गई । इससे अधिक दुःखी मनुष्य इस संसार में और कहाँ मिलेगा ?' ऐसा सोचकर हमने इस दरिद्री से कहा'भद्र ! तू हमारे साथ हमारे राजा के पास चल । वहाँ ले जाकर हम तुम्हारे सब दु:ख दूर करवायेंगे । तेरी सब दरिद्रता मिटायेंगे और कर्ज भी चुकवा देंगे।' हमारी बात का इसने विचित्र उत्तर दिया । वह बोला.... 'भाइयों! आपको मेरी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है । तुम या तुम्हारे राजा मुझे (कर्ज से) नहीं छूड़ा सकते'* ऐसा कहकर यह तो फिर से चलता बना । इसके इस विचित्र व्यवहार को देखकर हमने सोचा कि शायद यह दुरात्मा अत्यन्त दुःख से पागल हो गया है, पर हमें तो अपने राजा की आज्ञा का पालन करना चाहिये । यही सोचकर हम इसे पकड़ कर आपके सामने लाये हैं।
राजसेवकों से सारा वृत्तान्त सुनकर धवल राजा ने कहा-'अहा ! यह तो बड़ी अद्भुत घटना है । मुझे भी इसमें कुतूहल लग रहा है । मुझे देखने दो, बीच से पर्दा हटा दो।' राजपुरुषों ने पर्दा हटा दिया। धवल राजा को ठीक वैसा ही पुरुष दिखाई दिया जैसा कि राजपुरुषों ने वर्णन किया था। ऐसे विचित्र बीभत्स पुरुष को देखकर राजा और उसके पारिवारिक लोग अत्यधिक विस्मित हुए।
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