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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
गया। अनेक प्रकार के युद्ध-व्यूहों और एक-दूसरे को पराजित करने के लिये ऊपर नीचे अगल-बगल से किये गये उग्र वारों से युद्ध तीव्रतम स्थिति में आ गया। [१६६-१७०] भयाक्रान्त सुन्दरी
इस प्रकार जब तीनों में युद्ध चल रहा था, तब आने वाले दो पुरुषों में से एक पुरुष बार-बार लतागृह में प्रवेश करने का प्रयत्न कर रहा था। वह स्त्री लतागृह में अकेली रह गई थी इसलिये भयभीत हो गई थी। सिंह के त्रास से जैसे हरिणी घबरा जाती है, वैसी ही स्थिति उसकी हो गई थी। उसके पयोधर भय से धड़क रहे थे। वह अस्थिर दृष्टि से दसों दिशाओं में सहायता के लिये देखती हुई वहाँ से निकल कर भागने लगी। इसी समय उसकी दृष्टि विमलकुमार पर पड़ी, अतः हृदय में कुछ आश्वस्त होकर उसने विमलकुमार से कहा-'हे महापुरुष ! मेरी रक्षा करिये, मुझे बचाइये, मैं आपकी शरण में हैं।' विमल बोला-सुन्दरी ! तनिक भी मत घबरायो। अब डरने का कोई कारण नहीं है, तुम्हें प्रांच भी नहीं आने दूंगा।
जब कुमार सुन्दरी को आश्वासन दे रहा था तभी युद्धरत पुरुषों में से एक जो इतनी देर से लतागृह में उतरने का प्रयत्न कर रहा था लतागृह के ठीक ऊपर आकर ज्यों ही नीचे उतरने का प्रयत्न करने लगा त्यों ही विमलकुमार के गुण-समूह से उत्पन्न मानसिक बल के प्रभाव से वनदेवता ने उसे आकाश में ही स्तम्भित कर दिया। तब वह पुरुष आँखें फाड़-फाड़ कर इधर-उधर देखने लगा और अपने को छुड़ाने का प्रयत्न करने लगा, पर उसका कुछ भी वश नहीं चला और हलन-चलन क्रिया-रहित होकर वह चित्रांकित सा आकाश में लटक गया। [१७१] प्राक्रमणकारी की पराजय
स्त्री-पुरुष के जोड़े में से जो पुरुष युद्ध करने आकाश में गया था उसने अपने प्रतिद्वन्द्वी को पराजित कर दिया। प्रतिद्वन्द्वी हारकर भागने लगा तो वह पुरुष भी उसके पीछे झपटा । लतागृह पर चित्रलिखित से स्तंभित पुरुष ने जब यह देखा तब वह अत्यन्त क्रोधित होकर उसका पीछा करने की सोचने लगा। वनदेवता ने उसके मन के भाव जान लिये। वनदेवता का काम तो केवल स्त्री की मर्यादा को बचाने और विमल के असाधारण गुणों को मान देने का था, युद्ध में पड़ने या भाग लेने का नहीं था, अतः उस स्तंभित पुरुष को मुक्त कर दिया। मुक्त होते ही वह त्वरित गति से उनके पीछे आकाश में उड़ा। वे दोनों तो इतने दूर जा चुके थे कि दृष्टि-पथ में ही नहीं पाते थे। फिर भी यह देव उनके पीछे दौड़ता ही रहा।
। उस समय लतागृह में विमलकुमार की शरणागत वह सुन्दरी विलाप करने लगी-'हा आर्यपुत्र ! हा आर्यपुत्र !! आप मुझ मन्दभागिनी को अकेली छोड़कर
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