Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ५ : सज्जनता और दुर्जनता
भी बहत प्रसन्न हुई। माया को लगा कि वामदेव ने विमलकुमार को खब मूर्ख बनाया और उसे ठगकर भी उसका विश्वास प्राप्त कर लिया। वामदेव को उदरशूल
मैं अपनी कृत्रिम कथा विमल को सुना ही रहा था कि अचानक मेरे शरीर में इतनी तीव्र वेदना उठी, मानो मगरमच्छ मुझे निगल रहा हो, मानो मैं वज्र से दबा जा रहा हूँ, मानो यमराज मुझे चबा रहे हों। अचानक क्या हो गया ? कुछ समझ में नहीं आया। मेरे उदर की समस्त प्रांते कटने लगीं, पेट में इतने जोर का शूल/दर्द उठा कि मेरी आँखें बाहर निकल आयीं, सिर में दर्द से चीसें उठने लगीं, शरीर का जोड़-जोड़ ढीला पड़ गया, दांत हिलने लगे, मुंह में से सांसें निकलने लगों, नेत्र फिरने लगे और वाणी बन्द हो गयी। ऐसी अनहोनी वेदना देखकर विमल भी घबरा गया, आकुल-व्याकुल हो गया और हाहाकार कर उठा । धवल महाराज भी वहाँ आ पहुँचे और बहुत भीड़ इकट्ठी हो गई। तुरन्त ही नगर के सब वैद्यों को बुलवाया गया। राजाज्ञा से उन्होंने मुझे बहुत-सी औषधियां खिलाईं, पर मेरी व्याधि में थोड़ी भी कमी नहीं हुई। अमूल्य रत्न को खोज : भण्डाफोड़
__ मेरी इस अवस्था को देखकर विमल को रत्न की याद आयी। अभी रत्न के उपयोग करने का समय है, ऐसा सोचकर वह स्वयं ही क्रीडानन्दन उद्यान में गया और जहाँ रत्न छुपा कर रखा था उस स्थान को खोदा। पर, अफसोस ! उसे वहाँ रत्न नहीं मिला। 'अब क्या होगा? मित्र के प्राण कैसे बचेंगे ?' यही सोचते हुए वह मेरे समीप वापिस आया। उसे रत्न के जाने का विषाद नहीं था, पर मेरे प्राणों की चिन्ता थी।
___ इसी बीच उसी समय एक बुड्ढी स्त्री सिर धुनाती हुई वहाँ प्रकट हुई। पहले उसने अपने शरीर को मरोड़ा, दोनों हाथ ऊँचे किये, सिर के बाल खोले भयंकर रूप बनाया, फट-फट आवाज करने लगी और सारे शरीर से भयंकर चेष्टायें करने लगी। राजा और सभी लोग भयभीत हो गये और उन्होंने उसकी पूजा की, धूप दिया और उससे पूछा-भट्टारिका ! तू कौन है ?
उत्तर में वह बोली---मैं वन देवी हैं। वामदेव की यह अवस्था मैंने ही की है। इस पापी ने सद्भावयुक्त सरल स्वभावी विमल को धोखा देकर ठगा है। इस पापी ने रत्न को चुरा कर दूसरे स्थान पर छिपा दिया था। फिर घबराहट में रत्न के बदले पत्थर को लेकर भागा था। जब इसे मालूम हुआ तो रत्न लेने के लिये लौटकर वापिस आ रहा था और यहाँ आकर इसने यह नकली कहानी गढ़ सुनाई है। इस प्रकार वनदेवी ने सारी घटना का भण्डाफोड़ इतने विस्तार से किया कि सब लोग मेरी चोरी और ठगी के बारे में समझ गये। जहाँ मैंने रत्न छुपाया था
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