Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
जिस स्त्री के पैर बड़े, टेढ़े और सूप जैसे हों वह दासी होती है। जिस स्त्री के पाँव अत्यन्त रुक्ष हों वह दरिद्रता प्राप्त करती है और भिन्न-भिन्न कारणों से शोक पाती है । ऐसा लक्षणज्ञ मुनियों का कथन है। [१६१]
जिस स्त्री के पाँव की अंगुलियां दूर-दूर हों और रुक्ष हों, वह मजदूरी करने वाली होती है और यदि अंगुलियां अधिक मोटी हों तो वह दुःख और दरिद्रता को प्राप्त करती है। जिस स्त्री के पैर की अंगुलियां चिकनी, पास-पास, गोल, लाल और बहुत मोटी न हो वह स्त्री सुखी होती है। [१६२-१६३]
जिस स्त्री की जांघे और पिंडलिये पुष्ट हों, अधिक दूर-दूर न हों, चिकनी हों, तिल और रोमरहित हों और हथिनी की सूण्ड जैसी हों तो वह प्रशंसनीय होती है। [१६४]
जिस स्त्री की कमर विस्तृत, मांसल, चारों ओर से रक्तिम और शोभायमान हो तथा नितम्ब समुन्नत हों वह विशेष प्रशस्त मानी गई है। जिस स्त्री के पेट पर अधिक नाड़ियां दिखाई देती हैं और उन पर मांस दिखाई नहीं देता है वह दुष्काल में से आई हुई भूख का घर होती है । जिस स्त्री के पेट का मध्य भाग बराबर लगा हुया और सुन्दर हो वह सुख भोगने वाली होती है। [१६५-१६६]
जिस स्त्री के हाथ के नाखून खराब हों, हाथ पर फोड़े से दिखाई देते हों, बार-बार पसीना आता हो, अधिक मोटे हों, हाथ पर रोंये उगे हों, अधिक कठोर हों, हाथों की आकृति ठीक न हों, पीले, चपटे और रुक्ष हों, ऐसे हाथ वाली स्त्री बहुत दुःखी होती है। [१६७]
नोट- स्त्री-लक्षणों का वर्णन यहाँ एकाएक रुक गया है, इससे लगता है कि या तो स्त्री
शरीर का अधिक वर्णन हितकर नहीं समझा गया हो या लिखा हुआ अंश गुरु ने या अन्य किसी महापुरुष ने बाद में निकाल दिया हो।
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