Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ५ : नर-नारी शरीर-लक्षण
यदि नाखून रुक्ष और भिन्न-भिन्न रंग वाले हों तो वह व्यक्ति दुःशील [बुरे आचरण वाला ] होता है [६४-६५] *
जिनके पाँव बीच से छोटे हों वे स्त्री सम्बन्धी किसी कार्य में मत्यु को प्राप्त होते हैं । मांस रहित, पतले, पिचके हुए और लम्बे पैर अच्छे नहीं होते । पैर छोटे-बड़े हों तो भी अच्छे नहीं गिने जाते । कूर्म के सदृश उन्नत, मोटे, चिकने, मांसल, कोमल और एक-दूसरे से मिले हुए पैर भाग्यशाली के होते हैं और सुख देने वाले होते हैं। [६६-६७]
जिन पुरुषों की पिंडलिये कौए जैसी दुर्बल और लटकती हुई हों और जांघे बहुत लम्बी और मोटी हों वे दुःखी होते हैं तथा पैदल यात्रा करते हैं। उन्हें घर के वाहन उपलब्ध नहीं होते ।[१८]
जिनकी चाल हंस, मोर, हाथी और बैल जैसी हो वे इस लोक में सुखी होते हैं, इसके विपरीत चाल वाले दुःखी होते हैं । [६६]
जिनकी जानु गूढ, संधिरहित और सुगठित हों वे सुखी होते हैं, बहुत मांसल और मोटे जानु अच्छे नहीं होते । (१००)
जिस पुरुष का लिंग छोटा, कमल जैसा कान्तियुक्त, उन्नत और सुन्दर अग्रभाग वाला होता है वह प्रशस्त माना गया है और टेढ़े-मेढ़े लम्बे और मलिन लिंग को अशुभ माना गया है । [१०१]
जिसका वषरण (अण्डकोष) सहज लम्बा होता है, वह लम्बी आयु वाला होता है और जिसके वृषण छोटे-मोटे होते हैं वह थोड़ी आयुष्य वाला होता है। [१०२]
___मांसल और विस्तृत कटि शुभकारी होती है तथा पतली और संकड़ी कटि दरिद्रता देने वाली होती है। [१०३]
जिसका पेट सिंह, बाघ, मोर, बैल या मछली के पैट जैसा हो वह अनेक भोग भोगने वाला होता है । गोल पेट वाला भी भोग भोगने योग्य होता है । जिसकी कुक्षि मेंढ़क जैसी हो वह पुरुष शरवीर होता है, ऐसा प्राज्ञों का कथन है । [१०४]
जिसकी नाभि विशाल और गहरी तथा दक्षिणावर्त (दांयी तरफ मुड़ी हुई) हो वह सुन्दर गिनी जाती है । जिसकी नाभि ऊपर उठी हुई और वामावर्त (बांयी तरफ मुड़ी हुई हो) उसे लक्षणशास्त्रकारों ने अनिष्टकारी माना है। [१०५]
जिसका वक्षस्थल विशाल, उन्नत, तुंग, चिकना, रोंयेदार और सुकोमल हो वह भाग्यशाली होता है। इसके विपरीत जिसकी छाती छोटी, धंसी हुई, रुक्ष, रोंयेरहित और कठिन होती है वह निर्भागी होता है । [१०६]
* पृष्ठ ४७५
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