Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
उपमिति-भव-प्रपंच कथा
जिसकी पीठ कछुए, सिंह, घोड़े या हाथी की पीठ के समान होती है वह शुभकारी होती है।
जिस पुरुष की बाहु (भुजा) आवश्यकतानुसार लम्बी न हो वह दुष्ट होता है। छोटी भुजा वाले दास या नौकर होते हैं। प्रलम्ब बाह वाले भाग्यशाली होते हैं, दीर्घबाहु वाले प्रशस्त गुणी माने गये हैं । जिसकी दोनों हथेलियां कठिन हों, उसे विशेष काम करना पड़ता है। हाथ के नाखूनों के लक्षण भी पैर के नाखूनों के समान समझ लेने चाहिये । [१०७-१०६]
जिसके कन्धे लम्बे और भेड़ के कंधे जैसे मांसरहित हों, वह भार उठाने वाला मजदूर होता है । जो कंधे मांसल और छोटे होते हैं, उन्हें विद्वान् लोग श्रेष्ठ मानते हैं। [११०]
पुरुष का गला लम्बा और पतला हो तो वह दुःखदायी होता है। जो गला शंख के समान सुन्दराकृति वाला और तीन रेखाओं से युक्त हो वह श्रेष्ठ माना जाता है। [१११]
जिसके होठ विषम हों वह डरपोक, लम्बे हों तो भोगी और छोटे हों तो दुःखी होगा। जिसके होठ पीन (भरे हुए) हों वह सौभाग्यशाली होता है। [११२]
दांत निर्मल, एक समान, अणीदार, चिकने और पुष्ट हों तो शुभ समझे जाते हैं । इसके विपरीत गंदे, छोटे-बड़े, भोंथरे, रुक्ष और पतले दांत दु:ख के कारण माने जाते हैं । ३२ दांत वाला भाग्यशाली राजा, ३१ दांत वाला भोगी, ३० दांत वाला* मध्यम और ३० से कम दांत वाला भाग्यशाली नहीं माना जाता। बहुत अधिक या बहुत थोड़े दांत वाला, काले दांत वाला और चूहे जैसे दांत वाला पुरुष पापी गिना जाता है। जिसके दांत भयानक, घृणोत्पादक या टेढ़े-मेढ़े हों वे बुरे व्यवहार वाले, अत्यन्त पापी और नर-पिशाच माने जाते हैं। [११३-११६]
__ कमल पत्र जैसी लाल रंग की अणीदार जीभ शास्त्रों के जानकार विद्वान् मनुष्य की होती है। भिन्न-भिन्न रंग वाली जीभ शराबी की होती है। शूरवीर पुरुष का तालू कमल-पत्र जैसा कांतियुक्त और मनोहारी होता है। काले ताल वाला कुल का क्षय करने वाला होता है और नीला तालू दुःख का कारण होता है। [११७-११८]
हंस अथवा सारस के जैसे सुन्दर स्वर वाला पुरुष सुखी होता है। कौए एवं गधे जैसे स्वर वाला दुःखी होता है। [११६]
__लम्बी नाक वाला सुखी होता है और विशुद्ध (सीधी) नाक वाला भाग्यशाली होता है। चपटी नाक वाला पापी होता है और टेढ़ी नाक वाला चोर होता है। [१२०]
* पृष्ठ ४७६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org