Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
इनके चारों ओर करोड़ों सुभट घूम रहे थे। उन्होंने दूर से ही सभा-स्थान को छिपकर देखा। [१०-१२]
तत्पश्चात् विमर्श बोला-भद्र प्रकर्ष ! * हम अभीष्ट स्थान पर पहुँच गये हैं। भयंकर जंगल को पार कर महामोह राजा की सेना को देख लिया है । हमने इस सभा-स्थल और उसमें बैठे हुए महामोहराज और रागकेसरी राजा को सपरिवार देख लिया है । अभी हम को इस सभास्थल में प्रवेश नहीं करना चाहिये क्योंकि हम उनसे परिचित नहीं हैं, अतः अपरिचितों को देखकर कदाचित् उनके मन में शंका उत्पन्न हो सकती है और हमारे शोध-कार्य में बाधा आ सकती है। हम इतनी दूर से भी पूरे सभास्थल को अच्छी तरह देख सकते हैं, अतः कौतूहल से भी सभामण्डप में प्रवेश करना हम लोगों के लिये किसी प्रकार उचित नहीं है । प्रकर्ष की जिज्ञासा : उत्तर
प्रकर्ष - ठीक है मामा ! ऐसा ही होगा, किन्तु इस भयंकर जंगल, महानदी, नदीतट, विशाल मण्डप, मंच, सिंहासन, महामोह राजा, उनका प.रवार और अन्य राजाओं की अपूर्व शोभा-छटा को मैंने पहले कभी नहीं देखा, जिससे मैं आश्चर्यचकित हो रहा हूँ और इनमें से प्रत्येक के नाम और गुणों को विस्तार से जानने की प्रबल जिज्ञासा मेरे मन में हो रही है। मामा ! आपने मुझे पहले कहा भी था कि जो-जो वस्तुएँ देखोगे उन सब का यथावस्थित तत्त्व का आपको ज्ञान है, अतः इन सकल वस्तुओं का तत्त्व मुझे समझाइये ।
विमर्श-हाँ भाई ! मैंने कहा तो था, परन्तु तुमने तो एक साथ कई वस्तुओं के सम्बन्ध में प्रश्न कर दिये हैं, अतः इन सब के बारे में पहले अपने मन में सोच कर फिर तुम्हें बताता हूँ।
प्रकर्ष-आप अच्छी तरह चिन्तन कर कहें।
विमर्श ने उस जंगल का, महानदी का, नदी पुलिन (द्वीप) का, मण्डप का, मंच और सिंहासन का भली प्रकार अवलोकन किया। महामोह राजा, अन्य राजाओं, उनके परिवारों तथा समस्त बल का निरीक्षण करने के पश्चात् इनके सम्बन्ध में मन में सोचा, फिर अपने हृदय में मन्थन किया, इन्द्रियों के सब व्यापारों को बन्द कर, वृत्ति को दृढ़ कर, आँखों को निश्चल कर, थोड़ी देर तक एकाग्र होकर ध्यान किया । ध्यान पूर्ण कर तनिक सा मस्तक को हिलाते हुए हँस दिया।
प्रकर्ष-मामा ! यह क्या हया ?
विमर्श--अभी मैंने इन सब का स्वरूप समझ लिया है इसीलिये मुझे प्रसन्नता हुई है । अब तुझे इसके अतिरिक्त भी जो कुछ पूछना हो वह प्रसन्नता से पूछ ले।
प्रकर्ष-बहुत अच्छा अन्य प्रश्न फिर पूछौंगा । पहिले तो मैंने जो प्रश्न कर रखे हैं उन्हीं के विषय में बताइये । * पृष्ठ ३४२
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