Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच-कथा
मेरे सभी मंत्री, सेनापति और राजलोक के सदस्य मेरे अभिमानी और झठे व्यवहार से पहले ही मेरे विरुद्ध हो रहे थे । चक्रवर्ती की ऐसी प्राज्ञा को सुनते ही उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया और इस सम्बन्ध में स्पष्ट घोषणा करदी।
रिपुदारण का मान-दलन
तपन चक्रवर्ती के पास एक योगेश्वर नामक तन्त्रवादी था। उसे एकान्त में बुलाकर तपन चक्रवर्ती ने क्या-क्या करना और किस प्रकार करना इस सम्बन्ध में कान में गप्त रूप से समझा दिया । योगेश्वर ने चक्रवर्ती की प्राज्ञा को शिरोधार्य किया। तत्पश्चात् योगेश्वर बहुत से राजपुरुषों के साथ मेरे पास आया। उसने देखा कि मेरा मित्र शैलराज मेरा सहारा लेकर बैठा था पार मृषावाद मुझ से चिपट रहा था। मेरे अन्तरंग प्रदेश की उस समय ऐसी स्थिति थी और बाह्य प्रदेश में अनेक विदूषक हंसी-मजाक कर रहे थे तथा मुझे घेर कर चापलूसी कर रहे थे । योगेश्वर बिना कुछ बोले मेरे सन्मुख पाया और अपने पास के योगचूर्ण में से एक मुट्ठी भर कर मेरे मुह पर फेंकी। मणि,मंत्र और औषधियों का प्रभाव अकल्पनीय होता है, अतः उसी समय मेरी प्रकृति में बड़ा परिवर्तन आ गया। मेरा हृदय शून्य हो गया और समस्त इन्द्रियों के विषय विपरीत लगने लगे। मुझे उस समय ऐसा लगा जैसे किसी ने घोर अन्धकारमय विषम गुफा में फेंक दिया हो और मैं अपने स्वरूप को भूल गया होऊं । मेरे पास मेरा जो परिवार मुझे घेर कर बैठा था वह तो समझ गया कि योगेश्वर चक्रवर्ती की तरफ से आया है। ऐसा जानते ही वे सब भय से त्रस्त हो गये । योगेश्वर ने अपनी शक्ति से मोहित कर उन सब को किंकर्त्तव्य-विमूढ़ बना दिया। योगेश्वर ने हाथ में एक मोटी लाठी ली और भौंहें चढ़ाकर बोला- 'अरे पापी ! लुच्चे ! दुरात्मा ! हमारे स्वामी तपन चक्रवर्ती के पास नहीं पाता और उनके पैरों में नहीं पड़ता तो ले मजा चख ।' ऐसा कहकर मुझे लाठी से मारने लगा जिससे मैं भयभीत हो गया, मैं दीन-हीन बनकर उसके पैरों में गिर पड़ा। दर्भाग्य से उसी समय मेरा मित्र पुण्योदय भी मुझे छोड़कर चला गया और मृषावाद तथा शैलराज भी कहीं छुप गये।
रिपुदाररण का नाटक
इस प्रकार मैं परिवार और मित्रों से रहित हो गया। उसी समय योगेश्वर ने अपने साथ वाले पुरुषों को कुछ इशारा किया । क्षण भर में मेरे पूरे शरीर में उन्माद छा गया, तीव्रतर ताप होने लगा और अन्दर-बाहर से मेरा शरीर जलने लगा। उन्होंने मुझे जन्मजात नग्न (वस्त्ररहित) कर दिया, मेरे शरीर के पाँचों स्थानों के बाल नोच-नोच कर उखाड़ दिये, मेरा मुण्डन कर दिया, मेरे सारे शरीर पर राख पोत दी और पूरे शरीर पर उड़द चिपका दिये। मेरा ऐसा बोभत्स रूप बना कर
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