Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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१. माया और स्तेय से परिचय
[संसारी जीव अपनी कथा आगे बढ़ाते हुए सदागम को कह रहा है, भव्यपुरुष सुन रहा है तथा प्रज्ञाविशाला और अगृहीतसंकेता पास ही बैठी हैं। आत्मकथा क्रमशः प्रगति कर रही है :-] *
विमल कुमार
बाह्य प्रदेश में संसार प्रसिद्ध समस्त सौन्दर्यों का मन्दिर स्वरूप वर्धमान नामक एक नगर था । इस नगर के पुरुष पूर्वाभाषी (पातिथ्य सत्कार करने वाले), पवित्र, प्राज्ञ, उदार, जाति-वत्सल और जैन-धर्मपरायण थे। इस नगर की स्त्रियाँ भी अत्यन्त विनयी, शुद्ध शीलगुण विभूषित, सुन्दर अवयवों वाली, योग्य लज्जा मर्यादा वाली और धार्मिक वृत्ति वाली थीं। [१-३]
उस नगर का राजा धवल था। वह अभिमानोद्धत शत्रु रूपी हाथियों के कुम्भ-स्थल का भेदन करने वाला, निष्कपट तथा सत्पराक्रम सम्पन्न था। वह अपने बन्धु-वर्ग के लिये कुमुद-विकासी चन्द्र जैसा शीतल था और शत्रुओं के लिये तमविनाशी सूर्य जैसा प्रखर एवं प्रचण्ड रूपधारक था। इस धवल राजा की समस्त रानियों में ध्वजा के समान श्रेष्ठ सौन्दर्य और शील गुण सम्पन्न कमलसुन्दरी नामक पटरानी थी। उस पटरानी के गर्भ से सद्गुणों का मन्दिर विमल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। इस विमल की यह विशेषता थी कि जब यह छोटा था तब भी बालकों जैसी व्यर्थ चेष्टायें नहीं करता था परन्तु पूर्ण विकसित मनुष्य की तरह बड़प्पन एवं बुद्धिमत्ता के अनेक लक्षण प्रकट करता था। [४-८]
वामदेव का जन्म
इसी वर्धमान नगर में सोमदेव नामक अतिधनवान सेठ रहता था। वह गुणों का आश्रय स्थान सर्वजनमान्य एवं ख्यातिप्राप्त था। वह धन में कुबेर, रूप में कामदेव और बुद्धि में बृहस्पति को भी मात दे सके, ऐसा था। वह अत्यन्त धैर्यवान था और उसमें किसी प्रकार. का घमण्ड नहीं था। सोमदेव के अनुरूप ही गुणवती
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पृष्ठ ४६६.
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