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२. नर-नारी शरीर-लक्षण
__एक ओर विमलकुमार का शुद्ध सच्चा प्रेम और एक तरफ मेरा कृत्रिम प्रेम निरन्तर बढ़ रहा था। हम अनेक प्रकार के प्रानन्द भोग रहे थे और विलास कर रहे थे। एक दिन हम खेलते-खेलते क्रीडानन्दन नामक दर्शनीय सुन्दर वन में जा पहुंचे [७२] क्रीडानन्दन वन
__ यह वन अशोक, नागकेशर, पुन्नांग (जायफल), बकुल, काकोली और अंकोल वृक्षों से शोभित हो रहा था । चन्दन, अगर और कपूर के वृक्षों से मनोहारी लग रहा था। उसमें द्राक्षा-मण्डप इतने विस्तृत फैले हुए थे कि वे धूप को रोककर मण्डप के भीतर छाया कर देते थे जिससे वह वन अत्यन्त सुन्दर लगता था। झूमते केवड़े की मादक सुगन्ध भौंरों को अन्धा बना रही थी। ताड़, हिंताल और नारियल के वृक्ष इतने ऊंचे बढ़कर हवा में झूल रहे थे मानो वे नन्दनवन से स्पर्धा कर रहे हों और शाखारूपी हाथों से लोगों को बुला रहे हों। [७३-७५]
___ इस वन में अनेक प्रकार के अद्भुत आम्र लतागृह थे । किसी-किसी स्थान पर सारस, हंस और बगुले पाकर इधर-उधर घूम रहे थे । मन को हरण करने वाली मृदु गन्ध से भौंरे गुनगुना रहे थे। संक्षेप में यह वन ऐसा सुन्दर था कि उसे देखकर देवता भी मन में आश्चर्यान्वित भाव से संतोष प्राप्त करते थे। ऐसे मनोज्ञ क्रीडानन्दन वन में मैं विमल के साथ प्रविष्ट हुअा । हे मृगाक्षि ! विमल अतिशय सरल स्वभावी, पाप रहित और मन को आनन्द देने वाला था । ऐसे एकान्त वन में मेरे साथ क्रीडा करते और घूमते-फिरते वह आह्लादित हो रहा था । [७६-७७ ] वन में मिथन युगल
जब मैं और विमल लतामण्डप के पास आनन्द से बैठे थे तभी हमारे कानों में दूर से किसी स्त्री-पुरुष के धीरे-धीरे बात करने की, साथ ही पैर के झांझर की अस्पष्ट ध्वनि सुनाई दी। [७८]
यह आवाज सुनते ही विमल बोला--मित्र वामदेव ! यह किसकी आवाज पा रही है ? मैंने कहा-यह आवाज स्पष्ट न होने से मैं इसे भली प्रकार नहीं सुन सका । यह किसकी है और किधर से आ रही है यह भी नहीं जान सका । यहाँ तो अनेक प्रकार की आवाजों की संभावना है, क्योंकि इस वन में यक्ष विचरण करते
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