Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ५ : माया और स्तेय से परिचय
कनकसुन्दरी नामक उसकी पत्नी थी, जो शीलगुण सम्पन्न, लावण्यामृत से पूर्ण और अपने पति के प्रति अटूट भक्ति वाली थी । [ ६-११]
६
गृहीतसंकेता ! मेरी स्त्री भवितव्यता ने मुझे जो गोली दी थी उसके प्रभाव से मैं अपने अन्तरंग मित्र पुण्योदय के साथ कनकसुन्दरी की कुक्षि में पहुँच गया । गर्भकाल पूर्ण होने पर जैसे रंगमंच पर नट प्रकट होता है वैसे ही मैं योनि से बाहर आया । मेरी माता यह जानकर अतीव प्रसन्न हुई कि उसने एक निष्पाप पवित्र सुन्दर बालक को जन्म दिया है, इस भावना से माता ने मुझे देखा । * मेरे साथ पुण्योदय का भी जन्म हुआ था, पर मेरी माता उसे नहीं देख पायी, क्योंकि अन्तरंग व्यक्ति साधारण लोगों की भांति दिखाई नहीं देते । परिचारकों ने मेरे पिता को जब यह सुसंवाद सुनाया तब उन्होंने पुत्र जन्म महोत्सव किया, याचकों को प्रचुर दान दिया, गुरुजनों की पूजा भक्ति की और स्वजन सम्बन्धी आनन्द के बाजे बजा-बजाकर नाचे । जब मैं बारह दिन का हुआ तब मेरे पिता ने बड़े महोत्सव के साथ अत्यधिक सन्तुष्टिपूर्वक मेरा नाम वामदेव रखा । [ १२-१८ ]
माया श्रौर स्तेय का परिचय
अनेक प्रकार के लाड़-प्यार और सुखोपभोगों का अनुभव करता हुआ मैं क्रमशः बड़ा होने लगा । साथ ही मेरी चेतना भी वृद्धि को प्राप्त होती गई । हे भद्रे ! जब मैं कुछ समझदार हुआ तब मैंने दो काले रंग के पुरुष और एक कमर झुकी हुई विकृताकृति स्त्री को देखा । मैं सोच रहा था कि ये तीनों कौन हैं और मेरे पास किस प्रयोजन से आये हैं, तभी उनमें से एक पुरुष मुझ से बांहें भींचकर प्रेम से मिला और मेरे पाँवों में पड़ा ।
फिर वह बोला - अरे मित्र ! तू मुझे पहचानता है या भूल गया ?
मैंने कहा- भाई ! मैंने तो नहीं पहचाना, आपके साथ का कोई सम्बन्ध मुझे याद नहीं आता ।
मेरा उत्तर सुनकर वह काला मनुष्य शोकातुर हो गया ।
मैं ( वामदेव ) - भाई ! आप इतने शोकातुर और व्यग्र क्यों हो गये ? मनुष्य - मेरा घनिष्ठ परिचय होते हुए भी तू मुझे भूल गया, यही मेरे शोक और व्यग्रता का कारण है ।
मैं ( वामदेव ) - अरे भाई सुलोचन ! तूने पहले मुझे कब देखा है ? यह तोता ।
पृष्ठ ४७०.
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