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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
रही थी। सभास्थान में पहुँचकर उसने हर्षातिरेक पूर्वक महाराजा रिपुकम्पन को पुत्र जन्म की बधाई दी। समाचार सुनकर हर्ष से राजा का शरीर रोमाञ्चित हो गया। [१-४]
इसी समय मिथ्याभिमान भी वहाँ आ पहुँचा और वह रिपुकम्पन के शरीर में प्रविष्ट हो गया । मिथ्याभिमान के प्रविष्ट होते ही रिपुकम्पन अभिमान से इतना फूल गया मानो वह अपने शरीर में ही नहीं अपितु तीन भूवन में भी नहीं समा रहा हो । हर्ष के आवेश में विपरीत चित्त होने के कारण वह सोचने लगा कि-'अहो ! वह सचमुच भाग्यशाली है, कृतार्थ है, उसका कुल बहुत ही उच्च है । अहो ! देवताओं को भी उस पर बहुत कृपा है । अहो ! मेरे लक्षण कितने श्रेष्ठ हैं । अहा ! मेरा राज्य ! अहा ! मेरा स्वर्ग ! आज पुत्र-प्राप्ति से जन्म का फ़ल मिला । अहा ! जगत में मेरा जन्म सफल हुा । अहा ! मुझे कल्याण-परम्परा प्राप्त हुई । अहा ! आज मैं धन्य हुआ । अहा ! मेरे सभी मनोवांछित आज पूरे हुए । आज तक मेरे पुत्र नहीं था जिससे मैं करोड़ों मनोतियां मनाता रहता था, वह कुलनन्दन पुत्र ग्राज प्राप्त हुआ।' इस प्रकार मन में विचार करते हुए राजा ने प्रसन्नतापूर्वक वधाई देने वाली दासी को अपने कड़े, बाजूबन्द, हार, कुण्डल, कलंगी और एक लाख स्वर्ण मोहरें बधाई में दी। राजा के रोम-रोम में प्रसन्नना का रस प्रवाहित होने लगा । हर्ष से गद्गद् होकर उसने अपने मन्त्रिमण्डल को आज्ञा दी, 'पुत्र-जन्म का महोत्सव सर्वत्र आनन्दपूर्वक मनाइये ।' राजा की आज्ञा सुनकर मन्त्रियों ने क्षण मात्र में राजभवन में अनेक प्रकार के उत्सव प्रारम्भ करवा दिये । [५-८]
हवा के वेग से पाहत (प्रेरित) होकर ऊंची-नीची उठती लहरों के मध्य में जिस प्रकार जलजन्तुओं द्वारा अपनी पूछ ऊपर उछालने से तरंगों की हार माला उत्पन्न होने पर महा समुद्र में गम्भीर गर्जना (ध्वनि) उत्पन्न होती है उसी प्रकार उस राजमहल में क्षरण मात्र में चारों तरफ नौबत, शहनाई प्रादि वादित्रों का गम्भीर घोष व्याप्त हो गया । श्रेष्ठ मलय चन्दन का चूर्ण, केसर, अगर, कस्तूरी, कपूर आदि के सुगन्धित पानी के छिड़काव से सभी स्थान सुगन्धित एवं कीचड़मय (गीले) हो गये । सुगन्धित पानी को छकर आने वाली हवा भी सुरभित हो गई थी जिससे प्राणी मात्र प्रमूदित हो रहे थे। प्रकाशमान रत्नों की प्रभा से राजभवन में चारों तरफ ऐसा प्रकाश फैल रहा था कि सूर्य किरणों को तो वहाँ प्रवेश करने की आवश्यकता ही नहीं रह गई थी। [६-१०] *
वामन और कूबड़े महल में चारों तरफ नाटक करने लगे। जनाने महलों के नौकर हंसी-ठट्टा करने लगे। लोगों को रत्न-समूह बधाई में दिये जाने लगे। अमूल्य मोतियों के हारों को तोड़कर चारों तरफ मोती उछाले जाने लगे। योद्धा आडम्बर सहित नये-नये वस्त्र पहन कर अपना प्रदर्शन करने लगे। ललनायें राज
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