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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
२. विबुधालय
___ यह दूसरा उप-नगर विबुधालय है, इसे तू स्वर्ग के रूप में समझ । इसमें अनेक पारिजात के वृक्ष हैं । सुन्दर पारिभद्र वृक्ष, कल्पवृक्ष तथा अन्य अनेक प्रकार के सून्दर वृक्षों के वनों से यह व्याप्त है । इसमें सुरपुन्नाग वृक्षों की तथा चन्दन वृक्षों की सुरभित गन्ध सर्वदा प्रसरित होती रहती है। निरन्तर विकसित श्वेत कमल और कुमुदिनी से यह सुशोभित है । इसमें पद्मराग, महानील, वज्र, प्रवाल आदि रत्नों के ढेर चारों तरफ बिखरे हुए हैं । दिव्य स्वर्ण से अनेक छोटे-छोटे मोहल्ले बने हुए हैं । सुशोभित तेजस्वी मणियों की प्रभा से इस नगर का सारा अन्धकार दूर हो गया है। अनेक प्रकार के चित्र-विचित्र रत्नों की किरणों से यह नगर देदीप्यमान हो रहा है । जहाँ देखो दिव्य आभूषण तैयार दिखाई देते हैं। सुगन्धी का तो पार ही नहीं है। पुष्पमालायें चारों तरफ फैली हुई हैं । सुन्दर भोगों के समस्त साधन यहाँ उपलब्ध हैं। मन को हर्षित करने वाला उच्चस्तरीय नृत्य इस नगर में नित्य चलता ही रहता है। हृदय को छने वाला मधुर गीत-गान यहाँ निरन्तर होता ही रहता है, जिससे नगरवासियों के प्रानन्द में वृद्धि होती रहती है। इस नगर में रहने वाले देवता निरन्तर आनन्द और सुख में रहने वाले हैं, सूर्य से भी अधिक तेजस्वी हैं, अत्यन्त देदीप्यमान कुण्डल, केयूर, मुकुट और हार से वे द्युतिमान हो रहे हैं । अनेक भ्रमरों को आकर्षित करने वाली, कभी न कुम्हलाने वाली मन्दार पुष्पों की सुन्दर माला उन्होंने धारण कर रखी है। सुन्दर वनमाला से सुशोभित वे सतत प्रमुदित चित्त वाले लगते हैं । वे प्रीति-समुद्र में कल्लोल करते हुए अपनी सभी इन्द्रियों को पूर्णरूपेण तप्त करते हैं । विबुधालय ऐसे लोगों से भरा हुआ है। इस विबुधालय की भूमि भी श्रेष्ठ है और इसके निवासी भी सर्व प्रकार से सूखी हैं । तुम्हें याद होगा कि मोह राजा के मण्डप में वेदनीय राजा के एक साता नामक पुरुष का मैंने पहले वर्णन किया था। कर्मपरिणाम महाराजा ने जनालादकारी साता को ही इस विबुधालय का नायक (राजा) बनाया है । हे वत्स ! वही इस नगर को अनवरत प्रशस्त भोगों से परिपूर्ण रखता है, अनेक प्रकार के आह्लाद उत्पन्न करने वाले साधनों से सम्पन्न रखता है और सम्यक् प्रकार से सुव्यवस्थित रखता है । ऐसे साता राजा की नियुक्ति से ही इस नगर की समग्र प्रजा अत्यधिक सुखी रहती है।
[८४-६२] प्रकर्ष-मामा ! यदि यह विबुधालय इतना सुन्दर है तब महामोह आदि राजाओं की शक्ति यहाँ तो नहीं चलती होगी ? इस नगर के इतना अधिक सुखी होने का कारण क्या है, यह तो बताइये । [६३]
विमर्श-नहीं भाई ! ऐसी बात नहीं है। यहाँ भी अन्तरंग राजा अपनी शक्ति का पूर्ण प्रयोग करते हैं। यहाँ भी परस्पर ईर्षा, स्पर्धा, शोक, भय, क्रोध, लोभ, मोह, मद और भ्रम अपनी पूर्ण प्रबल शक्तियों के साथ सक्रिय हैं। अर्थात्
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