Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति भव- प्रपंच कथा
यह सब बात नहीं समझायेंगे, मुझे लगता है तब तक भवचक्र नगर का वर्णन अधूरा ही रहेगा । अतः मुझ पर कृपा कर इन सातों भयंकर स्त्रियों के बारे में मुझे समझाइये |
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उत्तर में विमर्श बोला - वत्स ! इन सातों स्त्रियों के बारे में तुझे विस्तार से बता रहा हूँ, ध्यान पूर्वक सुन । इन प्रति रौद्र दिखाई देने वालो सातों स्त्रियों के नाम अनुक्रम से जरा, रुजा ( व्याधि), मृत्यु, खलता ( दुष्टता ), कुरूपता, दरिद्रता और दुर्भगता (दौर्भाग्य) है । अब इन सात पिशाचिनों के बारे में तुमने जो प्रश्न पूछे उनका उत्तर दे रहा हूँ । [१२० - २७]
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१. जरा
प्रकर्ष ! तुझे कर्मपरिणाम महाराजा और कालपरिणति महारानी के बारे में तो याद ही होगा । वह महारानी सब कार्य समयानुसार करती है । इस महादेवी ने ही इस प्रथम पिशाचिन जरा ( वृद्धावस्था) को इस भवचक्रपुर में भेज रखा है । यद्यपि इसको प्रेरित करने में कुछ बाह्य कारण भी हैं, जैसे अधिक नमक आदि का प्रयोग (और अधिक संभोग) बुढ़ापे को जल्दी लाते हैं । जरा की शक्ति कैसी है ? सुन । जब यह प्रारणी के पास आकर प्राणी को प्राश्लेष ( प्रालिंगन ) में लेती है तब प्राणी के समस्त सुन्दर वर्ण, रूप, लावण्य और बल का पूर्णरूपेण हरण कर लेती है । जब यह प्राणी को प्रबल वेग के साथ आलिंगन पाश में जकड़ती है तब उसकी बुद्धि को भी भ्रष्ट कर देती है । ( कहावत भी है कि 'साठी बुद्धि नाठी । ' ) बलवान प्राणी की भी यह प्रति शोचनीय दशा बना देती । इसके आने पर कपाल में रेखायें, सफेद बाल, गजापन, शरीर में काले तिल और चकत्ते, शिथिल प्रवयव, कुरूपता, कंपकपी, चिड़चिड़ापन, बड़बड़ाना, शोक, मोह, शिथिलता, दीनता, चलने की शक्ति का ह्रास, अन्धापन, बहरापन, दन्तहीनता और वायु का प्रकोप आदि भी साथ-साथ ही चलते हैं । जरा के साथ उसका यह समस्त परिवार भी आता है और समय-समय पर अपना प्रभाव बतलाता है । वायु सब से पहले आता है और इसके आने से शरीर के अंग-प्रत्यंग के जोड़-जोड़ दुःखने लगते हैं, अर्थात् जैसे-जैसे शरीर में जीवन-शक्ति मन्द होती जाती है वैसे-वैसे वायु का प्रकोप बढ़ता जाता है । इस सब परिवार के साथ जरा मदमस्त गन्ध हस्तिनि की तरह भवचक्रपुर में आनन्द से मस्त होकर घूमती है । ऐसा है जरा का परिवार, आया कुछ समझ में ? भैया ! अब प्राणी की महान शत्रु यह जरा निश्चय पूर्वक किसको पीड़ा देती है ? इस प्रश्न का उत्तर भी सुनो । [१२८ - १३५]
यौवन
इस कालपरिणति महादेवी के प्रति सामर्थ्यवान उद्दाम पौरुष वाला (अरबी घोड़े जैसा ) यौवन नामक अनुचर ( नौकर ) है । यह यौवन भी योगी है और कालपरिणति की आज्ञा से प्राणियों के शरीर में प्रवेश करता है । अपनी योगशक्ति
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