Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
लाभदायी फल देने वाला हो और जो सर्वदा हितसाधक ही हो, कभी अहितकर न हो । तात्पर्य यह है कि सदनुष्ठानरूपी उपायों द्वारा प्राणी को ऐसे स्थान पर चले जाना चाहिये जहाँ जरा, व्याधि आदि पिशाचिनियों का उपद्रव हो ही नहीं सके।
प्रकर्ष-मामा ! ऐसा कौनसा स्थान है जहाँ इन जरा, व्याधि आदि सप्त पिशाचिनियों की शक्ति थोड़ी भी न चलती हो । निर्वृत्तिनगरी
विमर्श-- हाँ भाई ! ऐसा स्थान है। यह निर्वत्तिनगर के नाम से प्रसिद्ध है । यह नगर अनन्त आनन्द से परिपूर्ण है और एक बार प्राप्त होने के पश्चात् विनाशरहित है। एक बार इस स्थान की प्राप्ति हो जाने के बाद फिर से ऐसे स्थान पर आने की आवश्यकता ही नहीं होती जहाँ इन जरा, रुजा आदि राक्षसनियों का दौर चलता हो । यह नगर समग्र उपद्रवों से रहित है इसलिये इसमें निवास करने वाले प्राणियों पर जरा, व्याधि आदि राक्षसनियों का कोई प्रभाव नहीं चल सकता। जो प्राणी इस नगर में जाने की इच्छा रखता हो उसे अपने वीर्य (शक्ति) के विकास और उन्नति के लिये सुन्दर तत्त्वबोध (सम्यकज्ञान) प्राप्त करना चाहिये, शुद्ध श्रद्धा (सम्यक दर्शन) रखनी चाहिये और विशुद्ध क्रियाओं (सम्यक चारित्र) का पालन करना चाहिये। इस प्रकार जिन प्राणियों के वीर्य की वृद्धि तत्त्वबोध, श्रद्धा और सदनुष्ठान से हो रही होती है, वे यदि निर्वृत्तिनगर में न भी पहुँचे हों और उस नगर के मार्ग पर चल रहे हों तब भी उन्हें इन पिशाचिनियों सम्बन्धी पीड़ा अत्यल्प हो जाती है और उन्हे अतिशय सुख-परम्परा प्राप्त होती है । [१-४]
भवचक्रपुर के ये चारों उप-नगर मानवावास, विबुधालय, पशुसंस्थान और पापीपिंजर तो इन सातों पिशाचिनियों एवं अन्य महा-भयंकर घोर उपद्रवों से व्याप्त हैं; महान् त्रास के कारण हैं और भैया ! उनमें इतने अधिक क्षुद्र उपद्रवों के प्रसंग व हेतु उत्पन्न होते रहते हैं कि कोई उन्हें गिन भी नहीं सकता; क्योंकि यह भवचक्रपुर स्थान ही ऐसा है । [५-६]
प्रकर्ष-मामा ! तब आपके कहने का तात्पर्य तो यह हया कि यह भवचक्रपुर सम्पूर्णरूप से अत्यन्त दुःखों से परिपूर्ण है । [७]
विमर्श-वत्स प्रकर्ष ! तूने ठीक ही समझा। मेरे कहने का भावार्थ तू स्पष्टतः समझ गया है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस सम्पूर्ण भवचक्रपुर का सार तुझे भली प्रकार समझ में आ गया है । [८]
प्रकर्ष-मामा ! यदि ऐसा ही है तब यह तो बताइये कि इस नगर में के रहने वाले प्राणियों को कभी इस संसार से निर्वेद (खिन्नता, घबराहट) भी होता है या नहीं ? [६] * पृष्ठ ४३१
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