________________
प्रस्ताव ४: छः अवान्तर मण्डल (छः दशन)
६०१ हैं । अन्तिम छठे पुर का नाम लोकायतनिवास या चार्वाक नगर है। इसके निवासियों को नास्तिक या बार्हस्पत्य कहा जाता है । इन छहों अवान्तर मण्डलों के निवासियों पर विशेषरूप से मिथ्यादर्शन का शासन चलता है । अपनी स्त्री कुदृष्टि के साथ यह यहाँ पर जिस प्रकार का विलास करता है, यह तो मैंने तुझे पहले ही बता दिया था। इसका विलास इन छहों मण्डल के निवासियों में दृष्टिगोचर होता है। [३४-४०]
प्रकर्ष-मामा ! लोक-वार्तानुसार इस मण्डल में जो षट दर्शन कहे जाते हैं. क्या आपने उन्हीं के अनुयायियों का यह वर्णन किया है ? [४१]
विमर्श-वत्स ! उपरोक्त वर्णन में जिन छः मण्डलों (पुरों) का वर्णन किया गया है, उनमें से मीमांसक के अतिरिक्त सब दर्शन कहलाते हैं। मीमांसकपुर का निर्माण तो अर्वाचीन ही है, अतः लोग इसे दर्शन की पंक्ति में नहीं रखते । जैमिनी नामक आचार्य ने जब देखा कि वेद-धर्म का नाश हो रहा है और लोग अयोग्य प्रवृत्ति करने लगे हैं तब वेदों की रक्षा के लिये और प्रवर्तित दोषों को दूर करने के लिए उन्होंने वेदों पर मीमांसा की रचना की । यही कारण है कि लोग मामांसकपुर के अतिरिक्त पांच पुरों को दर्शन की संख्या में रखते हैं। अतः इस सम्बन्ध में संशय को कोई स्थान नहीं है। [४२-४५]*
__ प्रकर्ष-- मामा ! यदि ऐसा है तब लोग जिसे छठा दर्शन कहते हैं वह पुर कहाँ आया हुअा है ? यह बतायें । [४६] लोकोत्तर जैनपुर
विमर्श वत्स प्रकर्ष ! हम जिस श्रेष्ठतम विवेक पर्वत पर खडे हैं. उसके सामने जो निर्मल और उत्तग शिखर (चोटी) दिखाई देता है जिसे अप्रमत्तत्व कहते हैं, उसी पर छठा लोकोत्तर जैनपुर बसा हुआ है। यह पुर बहुत विस्तृत है और इसकी रचना भी असाधारण है । अन्य दर्शनों से इसमें विशेष असाधारण गुरण हैं जिसका वर्णन मैं विस्तार से बाद में करूंगा। लोक-मान्यता के अनुसार इसे भी अन्य दर्शनों के साथ छठे दर्शन के रूप में ही माना जाता है । इस जैनपुर (जैनदर्शनपुर) के निवासियों का यह वैशिष्ट्य है कि इस पर मिथ्यादर्शन मन्त्रो का वर्चस्व लेशमात्र भी नहीं चलता है । [४७-५०]
प्रकर्ष-मामा ! नीचे के मण्डलों (पुरों) में रहने वाले लोगों पर तो मिथ्यादर्शन का वर्चस्व चलता है और अप्रमत्तत्व शिखर पर बसे हुए जैनदर्शनपुर के निवासियों पर उसकी शक्ति नहीं चलती इसका क्या कारण है ? [५१]
__विमर्श-भाई प्रकर्ष ! इस लोक में एक मनोहर निर्वत्तिनगर है, जिसके निवासियों पर महामोह आदि राजाओं का वर्चस्व नहीं चलता, वे इस नगर में प्रवेश
* पृष्ठ ४३३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org