Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ४ : जैन दर्शनपुर
समस्त त्रस एवं स्थावर जन्तुओं के बन्धु हैं और समस्त जीवों के भाई हैं। ये नरोत्तम मनुष्य, देव या तिर्यञ्च की स्त्रियों को माता के समान मानते हैं और स्वयं इन सब स्त्रियों के प्रिय पुत्र हों ऐसा अनुभव करते हैं। इन महापुरुषों का चित्त धनधान्यादि बाह्य परिग्रह या क्रोध मान माया लोभ आदि अन्तरंग परिग्रह पर किञ्चित् भी आसक्त नहीं होता । अपने शरीर पर भी इन्हें आसक्ति नहीं रहती। कमल कोचड़ और जल से उत्पन्न होकर भी जैसे उससे अलग रहता है वैसे ही कर्म-कीचड़ से उत्पन्न और भोगजल से वृद्धि प्राप्त करने पर भी ये अब इन सब से दूर रहते हैं । ये महापुरुष सत्य बोलते हैं । प्राणियों के हितकारी वचन बोलते हैं। ये बोलते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है कि इनके मुख से अमृत झर रहा हो । सार-प्रसार की परीक्षा कर बोलते हैं । आवश्यकतानुसार मित शब्दों में बोलते हैं। व्यर्थ की बातें नहीं करते । ये महापुरुष असंग योग की साधना करते हैं। किसी प्राणी या वस्तु का संग सर्वथा न रहे ऐसी इच्छा रखते हैं और उसकी सिद्धि के लिये समस्त प्रकार से दोषों से रहित भोजन ग्रहण करते हैं तथा ऐसे दोष-रहित भोजन में भी किसी प्रकार की लोलुपता (गद्धता) नहीं रखते । संक्षेप में इन महात्माओं की सर्व प्रकार की चेष्टायें
और प्रवृत्तियाँ इस प्रकार की होती हैं कि जिससे महामोह आदि राजा इनसे दबे हए रहते हैं और इनके समक्ष अपनी शक्ति का नाम मात्र भी प्रदर्शन नहीं कर पाते तथा अन्त में हार कर वे इन्हें छोड़कर चले जाते हैं। [२७-३३]
भाई प्रकर्ष ! पहले तुमने चित्तवत्ति अटवी आदि देखी थी, इन भगवन्तों की उन सब के प्रति कैसी प्रवृत्ति रहती है, यह भी समझ लो । चित्तवृत्ति अटवी में तुमने जो प्रमत्तता नदी देखी थी वह इनके लिये बिलकुल सूखी है, नदी का तद्विलसित द्वीप इनके लिये शून्य के समान है, द्वीप के मध्य का चित्तविक्षेप मण्डप इनके लिये भग्न हो चुका है, मण्डप की तृष्णा-बेदिका नष्ट हो चुकी है, विपर्यास सिंहासन टूट गया है, महामोह राजा के अविद्या रूपी शरीर को इन्होंने चूर चूर कर दिया है और महामोह राजा को चेष्टा-शून्य कर दिया है। इन्होंने मिथ्यादशन पिशाच को उठाकर दूर फेंक दिया है, रागकेसरी का नाश कर दिया है, द्वेषगजेन्द्र को छिन्न-भिन्न कर दिया है और सेनापति मकरध्वज को तो जमीन पर पछाड़ दिया है। विषयाभिलाष मंत्री को कागज की तरह फाड़ कर फेंक दिया है और महामूढ़ता महारानी को धक्के मार कर बाहर निकाल दिया है। हास्य, जुगुप्सा, भय, अरति, शोक आदि विशिष्ट सुभटों का इन्होंने नाश कर दिया है । दुष्टाभिसन्धि आदि तस्करों को पददलित कर दिया है और सोलह कषायों के बालकों को इन्होंने भगा दिया है । ज्ञानावरणीय आदि तीन अत्यन्त दुष्ट राजानों का इन्होंने नाश कर दिया है। सात राजाओं में से वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र जो चार शेष हैं, उन्हें भी इन्होंने अपने अनुकूल बना लिया है। मोहराजा की चतुरंगी सेना इनके विषय में नष्ट प्रायः दिखाई देती है, उनकी सभी चालें विफल हो गई हैं, विब्बोक शान्त हो गया है, विलास गल गया है और सर्व प्रकार के विकार इनके सम्बन्ध में अदृश्य हो गये हैं।
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