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प्रस्ताव ४ : सात्विक-मानसपुर और चित्त-समाधान मण्डप
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से जो पापी होते हैं : उन्हें यह जैनपुर न तो इतना सुन्दर लगता है न सुखकारी प्रतीत होता है और न इसकी विशिष्टताएं ही उनके ध्यान में आती हैं। जो बहिरंग प्राणी सात्विक-मानसपुर में आकर इस विवेकगिरि पर रहते हैं उन्हें यह जैनपुर अतिसुन्दर लगता है, अतः जिनका भविष्य में शोघ्र ही परम कल्याण होने वाला होता है और जो सन्मार्ग की ओर प्रवृत्ति करने वाले होते हैं, ऐसे लोग ही इस स्वाभाविक सुन्दर नगर में रहते हैं । इस प्रकार सात्विक-मानसपुर के निवासियों के बारे में मैंने तुझे बताया, अब मैं विवेकगिरि के स्वरूप का वर्णन करता हूँ उसे तू सुन ।
[२६-३६] विवेकगिरि
भवचक्रपुर में रहने वाले लोग जब तक इस विवेकगिरि महापर्वत को नहीं देखते तब तक वे अनेक प्रकार के दुःखों में डूबे हुए रहते हैं । जब वे एक बार इस पर्वत के दर्शन कर लेते हैं तब उनकी बुद्धि भवचक्र की तरफ आकर्षित नहीं होती। इस पर्वत के दर्शन के परिणामस्वरूप अन्त में वे भवचक्र को छोड़कर विवेक पर्वत के शिखर पर चढ़ जाते हैं और समस्त प्रकार के दुःखों से रहित होकर अलौकिक निर्द्वन्द्व आनन्द के भोक्ता बन जाते हैं । वत्स ! इस निर्मल विवेक पर्वत पर स्थित वे सम्पूर्ण भवचक्रपुर को हस्तामलकवत् देख सकते हैं। वे बराबर देख सकते हैं कि भवचक्र में विविध घटनायें घटित होती हैं और यह नगर दु:खों से परिपूर्ण है । * इस नगर की परिपाटी को देखते-देखते ही उन्हें इसके प्रति वैराग्य पैदा होता है और "इससे दूर जाने का निर्णय करते हैं। भवचक्र से विरक्ति होते ही उन्हें स्वभावतः विवेक पर्वत पर प्रेम और आकर्षण उत्पन्न होता है, क्योंकि उनको यह ज्ञात हो जाता है कि वास्तविक सुख का कारण यह महान पर्वत ही है । भैया ! इस निर्णय के पश्चात् जब तक थोड़े समय के लिये वे भवचक्रपुर में रहते हैं, तब तक वे विवेक पर्वत के माहात्म्य से अत्यन्त सुखी रहते हैं, वास्तविक आनन्द को प्राप्त करते हैं और अत्यन्त उन्नत दशा के मार्ग पर पा जाते हैं। [२८-४४] अप्रमत्तत्व शिखर
भाई प्रकर्ष ! तेरे समक्ष मैंने समस्त प्राणियों के लिये सुख का हेतु इस विवेकगिरि के स्वरूप का वर्णन किया । अब मैं इस पर्वत के उत्तुंग शिखर अप्रमत्तत्व के विषय में तुम्हें बताता हूँ, सुनो। यह शिखर समस्त दोषों को नष्ट करने वाला है और अन्तरंग राज्य के समग्र दुष्ट राजाओं के लिए यह अत्यन्त त्रासदायक बन गया है । वत्स ! कारण यह है कि पर्वत पर आरूढ़ लोगों में उपद्रव फैलाने के लिये जब महामोह आदि शत्रु प्रयत्न करते हैं तब विवेकगिरि पर स्थित लोग इस अप्रमत्तत्व शिखर पर चढ़कर वे अपने शत्रुओं पर ऐसी मार करते हैं कि वे बेचारे पर्वत पर से
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