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उपमिति भव-प्रपंच कथा
भी व्याधि आती है, प्रतिकूल वस्तुओं के उपयोग से भी व्याधि प्राती है, वात, पित्त और कफ की विषमता से भी व्याधि आती है तथा राजस् और तामस् गुरण की वृद्धि से भी व्याधि आती है, परन्तु वस्तुतः इन बाह्य निमित्त कारणों को प्रेरित करने वाला भी असाता ही है, अतः व्याधि को प्रेरित करने में मूल कारण भी वही है । यह व्याधि भी अपने योगबल से मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट होकर अपनी शक्ति से उसके शरीर सौष्ठव और स्वास्थ्य का नाश कर रोगग्रस्त बना देती है । बुखार, अतिसार, कोढ, अर्श, प्रमेह, यकृत्वृद्धि, धूम्र, अपच, संग्रहणी, उदर एवं कटिशूल, हिचकी, श्वास, क्षय, गोला, वायु, हृदयरोग, मूर्छा, प्रबल हिचकी कंपकपी, खाज, दाद, अरुचि, सूजन, भगंदर, कण्ठरोग, चर्मरोग, जलोदर, सन्निपात, अतिप्यास, सरदी, नेत्ररोग, सिरदर्द, धनुर्वात आदि बीमारियाँ इस रुजा के परिवार के योद्धा हैं। परिवार के प्रताप से यह रुजा महाबलशालिनी है, अतः हे भैया ! इस पर विजय प्राप्त करना बहुत कठिन है । [१४७-१५६ ]
भी अपनी ओर से एक बहुत यह यहाँ के निवासियों को
नीरोगता वेदनीय राजा के साता नामक योद्धा ने अच्छी स्त्री नीरोगता को भवचक्र में भेजा है । सुन्दर रूप, रंग, शरीर, बल, बुद्धि, धैर्य, स्मृति और निपुणता प्रदान कर अनेक प्रकार के सुख और आनन्द का भोग करवाती है । पर, यह दारुण रुजा पिशाचिन नीरोगता को क्षण भर में नष्ट कर देती है और देखते-देखते ही प्राणियों के शरीर और मन में अनेक प्रकार की भयंकर पीड़ा पैदा कर देती है । हे वत्स! नीरोगता को समाप्त करने के लिये यह व्याधि प्राणियों से इस प्रकार चिपकती है कि एक बार प्राणी पर अपनी चढ़ाई करने के पश्चात् उस प्राणी से ऐसी-ऐसी चेष्टायें, चीख-पुकार और चिल्लाहट मचवाती है कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता । जैसे, व्याधि की चढ़ाई होने पर प्राणी अत्यन्त दीन स्वर से रोता है, विकृत शब्दों (विकार युक्त स्वर से) क्रन्दन / कोलाहल करता है, गहरी निसांसे छोड़ता है, तीव्र स्वर से रोता है. विह्वल होकर चिल्लाता है, दीन (तुच्छ) वचन बोलता है, बार-बार लम्बी चीसें मारता है और जमीन पर इधर-उधर लोटता है । उसके पास ही क्या हो रहा है, इसकी भी उसे खबर नहीं रहती । श्रचेतन होकर निरन्तर व्याधि की पीड़ा में पचता रहता है । प्रतिदिन शोक में घबराया हुआ उद्विग्न दिखाई देता है । जैसे अब उसकी रक्षा करने वाला कोई न हो इस प्रकार दीन / अनाथ जैसा विक्लव दिखाई देने लगता है । भय से उद्भ्रांत दिखाई देता है । नरक के नारकीय प्राणी जैसा दिखावा वह व्याधि के प्रभाव से यहीं करने लगता है । भय से पागल हो जाता है । हे वत्स ! इस प्रकार इस भवचक्र नगर में यह पापिनी रुजा नीरोगता को नष्ट कर प्राणियों को अनेक प्रकार की पीड़ा पहुँचाती हैं जिससे विश्व के प्राणी उससे पीड़ित, दबे हुए, कुचले हुए और अत्यन्त दुःखी दिखाई देते हैं । [ १५७-१६४]
* पृष्ट ४२३
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