Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ४ : सात पिशाचिनें
५८७ हे वत्स ! इस प्रकार मैंने तेरे समक्ष रुजा पिशाचिनी का संक्षेप में वर्णन किया, अब मैं तीसरी पिशाचिन मृति का वर्णन करता हूँ, सुन । मृति (मृत्यु /मरण)
तीसरी अति दारुण दिखाई देने वाली स्त्री का नाम मृति (मृत्यु) है। इसने तो सम्पूर्ण भवचक्रपुर को अपने पांव तले रौंद कर दबा रखा है। इसका अति संक्षिप्त विवरण सुनाता हूँ उसी से तू समझ जायगा कि यह कौन है ? चित्तविक्षेप मण्डप में जिन सात राजाओं का वर्णन मैंने पहले किया है, उन्हीं में से एक आयु नामक राजा भी था जिसके साथ चार अनुचर थे, तुझे याद होगा । इस आयु के क्षय से ही मृत्यु प्रवर्तित होती है । यह सत्य है कि इसकी विचित्र प्रवृत्ति के सैकड़ों बाह्य कारण भी हैं, जैसे विष से, अग्नि से, शस्त्र से, जल में डूबने से, पर्वत-पतन से, घोर भय से, भूख से, व्याधि से, सर्पदंश से, असह्य तृषा, शीत, गर्मी, लू आदि से, अधिक श्रम और अधिक वेदना से, अधिक आहार के परिणामस्वरूप अपच से, अधिक दुर्ध्यान से, थम्भे दीवार या वाहन से टकराकर, अति भ्रम से, श्वासोच्छवास मलमूत्र आदि के रुक जाने से और ऐसे ही अन्य-अन्य कारणों से भी मृत्यु का आवागमन दिखाई देता है । परन्तु, इन सब को प्रेरित करने वाला और इन बाह्य कारणों को एकत्रित करने वाला मूल कारण तो प्रायुराज का क्षय ही है। वस्तुतः प्रायु क्षय होते ही मति (मत्यु) प्राणी को जकड़ लेती है। इस मत्यु में कितना सामर्थ्य है, यह भी सुनले । यह क्षण मात्र में प्राणियों की श्वास को रोक देती है, वाणी को बन्द कर देती है, हिलना-डुलना बन्द कर देतो है. चेतनाहीन कर देती है, खून का पानो कर देती है, शरीर और मुह को विकृत एवं लकड़ी जैसा कठोर बना देती है । इसके आगमन के पश्चात् यदि शरीर कुछ अधिक देर पड़ा रह जाय तो उसे दुर्गन्ध से परिपूर्ण बना और प्राणी को सर्वदा के लिए दीर्घ निद्रा में सूला देती है।
[१६५-१७१] अन्य पिशाचिनें तो अपनी सहायता के लिये अपने साथ अपना परिवार रखती हैं. पर यह मृत्यु तो अकेली ही अपना सब काम कर लेती है। इसको न तो किसी की सहायता को ही आवश्यकता है और न यह किसी को अपने साथ ही रखती है। यह अकेली ही प्रपना तोव प्रबल शक्ति से सब कार्य पूरा कर लेती है । इसका कारण यह है कि सम्पूर्ण त्रैलोक्य में सभो चराचर प्राणी यहाँ तक कि स्वयं देवेन्द्र
और चक्रवर्ती भी इसके नाम मात्र से कांप उठते हैं। महान शक्ति, बल और तेज वाले त्रिभूवन प्रसिद्ध व्यक्ति भी इसका नाम सुनकर भय से कातर बन जाते हैं। भैया ! जिसका स्वयं का इतना सामर्थ्य हो उसे परिवार की क्या आवश्यकता है ? संसार के अत्यन्त अद्भुत कार्य यह दूर रहकर अकेली हा कर लेती है, इसलिये यह पिशाचिन * अपने ऐश्वर्य के मद में स्वच्छन्दचारिणी बनकर विचरती है, घूमती है
और अपनी शक्ति का सर्वत्र प्रयोग करती है । इसे किसी अपेक्षा या सहायता की * पृष्ठ ४२४
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