________________
५५२
उपामांत-भव-प्रपंच कथा
ही हाथ से अघटित (आकस्मिक) घटना कर बैठते हैं। सर्व प्रकार के अधम से अधम पापों का प्राचरण करते हैं । सम्पूर्ण संसार को अनेक प्रकार से कष्ट देते हैं। बिना कारण ही धराशायी होकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। जन्म गंवाकर दुर्गति को प्राप्त होते हैं। भाई ! इसमें आश्चर्य क्या ? विद्वान् लोग तो कहते हैं :
जो अधम प्राणी मदिरा और परस्त्री में प्रासक्त होते हैं उन्हें ऐसे ही अनर्थकारी फल चखने पड़ते हैं । इसमें प्रश्न करने का अवकाश ही कहाँ है।
सभी सज्जन पुरुष शराब की निन्दा करते हैं। मदिरा अनेक क्लेशों का कारण (जननी), सर्व प्रकार की आपत्तियों का मूल और सैकड़ों पापों से प्राकुलित है।
जो व्यक्ति मदिरा-पान और परस्त्री-लम्पटता का व्यसन नहीं छोड़ सकता उसका अन्त में राजा लोलाक्ष के समान ही क्षय (नाश) होता है।
__ भाई ! जो प्राणी मद्य और परस्त्री का त्याग करते हैं, वे वस्तुतः विवेकशील और पण्डित हैं, वे पुण्यशाली हैं, वे भाग्यवान हैं और वे सचमुच में कृतार्थ हैं। [१-४]
प्रकर्ष - मामा ! आप शराब और परस्त्री-गमन के विषय में जो कुछ कह रहे हैं, वह युक्त ही है । इसमें कोई संशय नहीं है।
२३. रिपुकम्पन मिथ्याभिमान
विमर्श और प्रकर्ष मानवावास के ललितपुर को देखने की इच्छा से थोड़े दिनों तक घूमते रहे । अन्यदा ललितपुर में घूमते हुए उन्होंने राजकुल के समीप एक पुरुष को देखा।
प्रकर्ष --मामा ! यह तो मिथ्याभिमान दिखाई देता है। विमर्श -हाँ, भाई ! यह मिथ्याभिमान ही है ।
प्रकर्ष-मामा ! इन भाई साहब को तो हमने राजसचित्त नगर में देखा है। ये वहाँ स्थायी रूप से नियुक्त थे फिर वहाँ की स्थायी नियुक्ति को छोड़कर ये यहाँ कैसे आ गये ?
विमर्श-महामोह महाराजा की मकरध्वज पर इतनी अधिक कृपा है कि इसके राज्य की ऋद्धि बढ़ाने के लिये जिनकी भी आवश्यकता हो, उन्हें अन्य स्थान पर स्थायी नियुक्ति होने पर भी ससैन्य बुला लिया जाता है । यद्यपि ये मिथ्याभिमान और मतिमोह आदि यहाँ आये हुए हैं, फिर भी ये राजसचित्त और तामसचित्त नगर
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org