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प्रस्ताव ४ : विवेक पर्वत से अवलोकन
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को बुलाकर बड़ा उत्सव मनाया। फिर तो वहाँ नत्य-गायन होने लगे, वादित्र बजने लगे, ढोल तासे गूजने लगे। बहुत वर्षों बाद मिले अपने मित्र धनदत्त की खुशी में वासव सेठ के घर में आनन्द उत्साह फैल गया। सभी कुटुम्बीजनों ने उत्तम वस्त्राभूषण धारण किये और सब को प्रमोदकारक सुस्वादु भोजन कराया गया। क्षणमात्र में इतने अधिक आनन्द-कल्लोल को देखकर बुद्धिनन्दन प्रकर्ष के मन में विस्मय हया और नये-नये कौतुक देखने की उसकी इच्छा सन्तुष्ट हुई । कौतूक मिश्रित प्रानन्द में उसने विमर्श से पूछा-मामा ! वासव सेठ का घर हर्ष-कल्लोल से नाच उठा है और इतनी अधिक धूमधाम हुई है, क्या यह सब नाटक हर्ष ने कराया है ? उत्तर में विमर्श शान्ति से बोला-हाँ भाई, तेरा सोचना ठीक ही है। जब बिना किसी कारण किसी स्थान पर ऐसा प्रानन्द का प्रसंग आ जाय, तब समझ लेना चाहिये कि उसका कारण हर्ष ही है। [१४-२०]
जिस समय वासव सेठ के घर में आनन्द मनाया जा रहा था उसी समय प्रकर्ष ने एक अत्यन्त भयंकर आकृति वाले काले मनुष्य को घर के द्वार में प्रवेश करते देखा और अपने मामा से पूछा-मामा ! यह अत्यन्त अधम पुरुष यहाँ कौन आ पहुँचा?
विमर्श-- भाई ! यह तो शोक का अन्त रंग मित्र विषाद नामक अत्यन्त कठोर और भयंकर पुरुष है । देख, वह जो पथिक यात्री पा रहा है, यह बहुत दूर से चलकर पाया है और यह वासव सेठ के घर में जायेगा। उसी के साथ यह विषाद भा उसके घर में प्रविष्ट होगा, ऐसा लग रहा है । [२१-२३]
___ मामा-भाणेज विवेक पर्वत पर खड़े-खड़े बातचीत कर ही रहे थे कि वह यात्रो वासव सेठ के घर में प्रविष्ट हुआ और उसने सेठ को एकान्त में ले जाकर कोई गोपनीय संदेश कह सुनाया । जिस समय पथिक सेठ से बात कर रहा था उसी समय विषाद सेठ के शरीर में प्रविष्ट हुआ। यात्री की बात सुनते ही सेठ तुरन्त चेतना-शून्य मूच्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा । * आनन्द कल्लोल रुक गया और सभी कुटुम्बी घबरा कर उसके पास दौड़े और 'अरे ! क्या हो गया ? हाय क्या हो गया ?' कहते हए, विलाप करते हुए जोर-जोर से पूछने लगे। सेठ को पंखा किया गया, अन्य शीतल प्रयोग किये गये तब थोड़ी देर बाद उसकी चेतना लौटी। मर्जी जाते ही वासव सेठ विषाद पूर्ण प्रलाप करते हुए रोने लगा, 'अरे पुत्र ! बेटे ! मेरे सुकुमार फूल ! कुलशृगार ! अरे भाई ! मेरे किन कर्मों के कारण तेरी ऐसी अवस्था हई ? हे पुत्र ! मैंने तुझे बहुत रोका था, पर मेरे पाप के उदय के कारण तू घर से निकल गया और दयाहोन दैव ने तेरी यह स्थिति बना डाली। अरे ! मैं तो मर गया। मेरी आशायें भग हो गई। अरे ! मैं लुट गया । मेरी सारी चतुराई नष्ट हो
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