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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
देखने आ रहा हो । उसके आसपास सैकड़ों कंसालक, देगु आदि वादित्र बज रहे थे जो भ्रमरों के गुजारव का भ्रम पैदा कर रहे थे। विलास करती हुई ललनाओं के घुघरुओं और बीणा की मधुर ध्वनि के साथ नृत्य-गान भी चल रहा था। [१-४]
विमर्श और प्रकर्ष ने देखा कि महासामन्त-वृन्द से परिवेष्टित, श्रेष्ठ हस्तिस्कन्ध पर प्रारूढ़ जिसके मस्तक पर विकसित सुन्दर श्वेत कमल जैसा धवल छत्र शोभायमान है, राजा पा रहा है । वह राजा देवताओं के समूह के मध्य ऐरावत हाथी पर बैठे हुए इन्द्र जैसा सुशोभित हो रहा था। उसके आगे-आगे अनेक श्वेत छत्रधारी लोग हर्षानन्द से कलकल ध्वनि करते हुए चल रहे थे जिससे ऐसा लग रहा था मानो गर्जन करता हुआ समुद्र फेनपिण्ड (सफेद भागों) से भर गया हो अथवा चलती फिरती कदली (ध्वजा) रूप हजारों हाथों द्वारा प्रतिस्पर्धा से तीनों लोकों की अवगणना कर रहा हो, अर्थात् हजारों लोग अपने हाथों में श्वेत ध्वजाएं लेकर चल रहे हों।
जब यह राजा नगर में से निकलकर उद्यान के निकट पहुँचा तब भौंरे वातावरण को विशेष गुजित करने लगे, मृदंग बजने लगे, वीणा में से मधुर स्वर निकलने लगे, कंसालक (कांसी) उच्च स्वर में बजने लगे, रण-रण करते मजीरे बजने लगे, गायक ताल सुर मिलाने लगे, विदूषक कोलाहल करने लगे, चारों तरफ जय-जयकार होने लगा, भाट विरुदावली गाने लगे, गणिकायें नत्य करने लगी और दर्शकों में खलबली मच गई। चारों तरफ अधिक हास्य विलास जमने लगा।
___ उस जन समुदाय में कुछ लोग नाचने-कूदने और दौड़ने लगे, कुछ हर्षध्वनि करने लगे, कुछ कटाक्ष करने लगे, कुछ भूलुण्ठित होने लगे, कुछ परस्पर हास्य विनोद करने लगे, कुछ गाने बजाने लगे, कुछ हर्ष-विभोर होने लगे, कुछ हरे-हरे
आवाज कसने लगे, कुछ भुजाओं से टक्कर मारने लगे और कुछ अानन्दातिरेक में हाथ में सोने की पिचकारियाँ लेकर केशर कस्तूरी मिश्रित सुगन्धित जल एक दूसरे पर फेंकने लगे। इस प्रकार सब लोग अश्रुत एवं उद्भट विलास में पड़कर कामदेव की अग्नि से उत्तेजित हो रहे थे। महाविद्वान् और बुद्धिशाली विमर्श ने जब उन लोगों को इस अवस्था में देखा तब उसने अपने मन में क्या सोचा ? विमर्श का चिन्तन : प्रकर्ष का प्रश्न
वसन्त ऋत के रस में लबालब डूबे हुए लोगों द्वारा मचाई हुई धमाचौकड़ी को देख कर विमर्श सोचने लगा कि, अहो! मोह राजा को शक्ति वास्तव में आश्चर्यकनक है । अहा ! रागकेसरी का विलास भी अति प्रबल है । अहो! विषयाभिलाष मंत्री का प्रभाव भी कुछ कम नहीं है । अहो ! मकरध्वज कामदेव का माहात्म्य भी आश्चर्यकारक है । अहो! कामदेव की पत्नी रति की क्रीड़ा भी महान् लुब्धकारो है । अहो ! महासुभट हास्य का हर्षोल्लास भी विस्मयकारक है। अहो ! पापपूर्ण
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