Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ४ : वसन्तराज और लोलाक्ष
पालन पर - शरीर - प्रवेश द्वारा कर रहे हैं । प्रचण्ड शासक होने से महाराजा मकरध्वज का * प्राज्ञा बड़ी कठोर होती है और वह अपने प्रदेश को क्रियान्वित भी करवाता है । जिसको जो कार्य करने की श्राज्ञा मिली हो उसे मात्र उतना ही कार्य उस प्रसंग में करना चाहिये। जिसका जितना माहात्म्य हो उसे उस अवसर पर उतना ही प्रकट करना चाहिये । जिसे स्वयं जितनी आय करने की छूट है उतनी ही श्रय वह करे, उससे अधिक भी नहीं और उससे कम भी नहीं । तुझे यह बात मैं दृष्टान्त देकर समझाता हूँ, सुनो
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इस लोलाक्ष राजा को, उसके राज्याधिकारियों को और उसकी प्रजा को मकरध्वज ने जीत लिया है, फिर भी उन लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं है । इतना ही नहीं, ये सभी बाह्य लोग मकरध्वज को अपने भाई जैसा ही मानते हैं । यह सब योजना महामोह राजा द्वारा क्रियान्वित की गई है। मकरध्वज महाराज की ऐसी ही श्राज्ञा है कि महामोह राजा मात्र इतने ही कार्य की पूर्ति करके अपना माहात्म्य बतावें । ये सभी बाह्य लोग जो परस्पर प्रेम दिखा रहे हैं और एक दूसरे से लिपट रहे हैं तथा अपने को बड़ा कृतकृत्य एवं सौभाग्यशाली मान रहे हैं. इस कार्य को रागकेसरी ने सम्पन्न किया है । रागकेसरो को ये परिणाम उत्पन्न करने की योजना बताई गई थी और इतना करने में ही उसका माहात्म्य है, जो उसने पूरा कर दिखाया है । ये बाह्य लोग जो शब्दादि इन्द्रियों के विषयों की तरफ आकर्षित होते हैं और सैकड़ों प्रकार के विकारों में फंसते हैं, यह सब करणीय कार्य विषयाभिलाष मन्त्री को सौंपा गया था । विषयाभिलाष ने ये परिणाम उत्पन्न किये, बस यही उसका प्रभाव है और यही उसकी प्राय है । ये लोग अट्टहास करते हैं, खिलखिला हँसते हैं और एक दूसरे पर व्यंग कसते हैं, यह सब हास्य द्वारा उत्पन्न किया गया प. गाम है । इसी प्रकार इनकी पत्नियाँ महामूढता, भोगतृष्णा और तुच्छता आदि ने भी उनको सौंपे गये कार्य को पूरा करती हैं । इसी प्रकार अन्य राजा और वे १६ बच्चे भी उनको सौंपे गये कार्य को पूरा किया है, स्वयं का महत्व जताते हें और अपने खाते में उतनी ही प्राय जमा करते हैं । इन सभी की निश्चित कार्यों पर ही नियुक्ति है । ये लोग शब्दादि इन्द्रियों के भोग भोगते हैं, सहर्ष अपनी स्त्रियों को अपने अनुकूल करने का प्रयत्न करते हैं. उनका मुख चुम्बन करते हैं, उनके शरीर से लिपटते हैं, उनके साथ मैथुन ( रति क्रिया) करते हैं, इत्यादि सब कामों पर मकरध्वज ने किसी को नियुक्त नहीं किया है परन्तु ये सब काम तो मकरध्वज अपनी स्त्री के साथ स्वयं ही करता है, क्योंकि इन कार्यों को केवल मकरध्वज में ही है, अन्य किसी में नहीं है । हे वत्स ! शोक आदि को भी काम सौंपा हुआ है, पर वे अपने सौंपे हुए काम को पूरा करने के अवसर को प्रतीक्षा में हैं । इसीलिये अभी वे प्रकट रूप में दिखाई नहीं देते ।
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सम्पन्न करने की शक्ति इस प्रकार द्व ेषगजेन्द्र,
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