Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ४ : सोलह बालक
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विरति त्याग). व्रत, नियम आदि के फलस्वरूप उसका कुछ-कुछ कल्याण तो इनकी उपस्थिति में भी होता है पर सम्पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता, क्योंकि वे सर्वविरति (सम्पूर्ण व्रत नियम) ग्रहण नहीं कर सकते [४४५-४४८।
४. संज्वलन- भाई प्रकर्ष । इन प्रत्याख्यानी बालकों से भॊ छोटे जो केवल गर्भपिण्ड के समान चार बालक दिखाई दे रहे हैं उन्हें मुनि गव संज्वलना क्रोध, मान, माया और लोभ के नाम से पुकारते हैं। ये बच्चे क्रीड़ा करने में ही आनन्दित होते हैं और स्वभाव से ही अति चपल और चञ्चल रहते हैं। सर्व पाप से विरत साधुओं के चित्त को भी ये बच्चे कभी-कभी डांवाडोल कर देते हैं अर्थात् ऐसे विशाल हृदय मुनिजनों के मन में भी अपनी चञ्चलता.से उथल-पुथल मचा देते हैं। फलस्वरूप सर्व पष्प को नष्ट करने के इनके निश्चय में भी कभी-कभी इन बच्चों के कारण दोष लग जाता है, शुद्ध मार्ग में अतिचार आ जाता है और उन्हें प्रायश्चित्त लेना पड़ता है । यद्यपि बाह्य प्रदेश के प्राणियों को ये बच्चे बहुत छोटे-छोटे और सुन्दर प्रतीत होते हैं तथापि संसारी प्राणियों के लिये वे सुन्दर तो कदापि नहीं हो सकते, क्योंकि ये बड़े-बड़े मुनियों के चित्त को भी कुछ-कुछ क्षुब्ध कर देते हैं। [४४६-४५३]
इन चार-चार बालकों के समूह का कुछ विस्तृत विवरण मैंने प्रस्तुत किया है, परन्तु इनके विशिष्ट गुणों का वर्णन करने में कौन समर्थ हो सकता है ? तथापि कभी अवकाश में प्रसंग पाने पर प्रत्येक के नाम गण और शक्ति का वर्णन करू गा । इनमें से आठ बालक (माया और लोभजन्य अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्वलन) रागकेसरी के सामने खेल कूद कर रहे हैं । ये रागकेसरी और उसको अत्यन्त वल्लभा पत्नी मूढता के पुत्र हैं। * और, जो शेष पाठ बालक (क्रोध एवं मानजन्य अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्वलन) द्वषगजेन्द्र के सन्मुख धमा-चौकड़ी कर रहे हैं वे द्वेषगजेन्द्र और उसकी प्रियपत्नी अविवेकिता के पुत्र हैं। ये सोलह ही बालक महामोह राजा के पौत्र हैं। इन सोलह बालकों को इनके माता-पिता ने सिर पर चढ़ा रखा है जिससे ये अत्यधिक चपल
और शक्तिसम्पन्न बन गये हैं। इनकी शक्ति का वर्णन तो इस संसार में हजार जिह्वानों से भो करने में कौन समर्थ हो सकता है ? प्रकर्ष ! इन बच्चों का औद्धत्य तू देख, सामने जितने भी राजा बैठे दिखाई दे रहे हैं ये बच्चे उनके भी सिर पर चढ़कर बैठ जाते हैं । भैया ! इस प्रकार महामोह राजा के अंगभूत पूरे परिवार का संक्षेप में मैंने तुम्हारे समक्ष वर्णन किया जो तुमने भली प्रकार समझ लिया होगा।
[४५५-४६४]
* पृष्ठ ३७५
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