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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
सैनिक) समझना चाहिये । विशेषता यह है कि जहाँ कर्मपरिणाम राजा स्वभाव से ही समस्त प्राणियों को कभी अच्छा कभी बुरा लगने वाला कार्य करता है वहाँ महामोह राजा तो सभी प्राणियों को बुरा लगने वाला कार्य ही करता है । दूसरी विशेषता यह है कि महामोह तो युद्ध कर अपने शत्रुओं को जीतने की इच्छा वाला है, जब कि कर्मपरिणाम तो स्वभाव से ही नाटक-प्रिय है और नये-नये खेल देखने का अभिलाषुक है। इसीलिये ये सभी छोटे-बड़े राजा सर्वदा महामोह राजा की ही सेवा करते हैं । किन्तु, यह कर्मपरिणाम महाराजा उसका बड़ा भाई है और इसका राज्य भी बहुत विस्तृत है, इसीलिये लोग उसी को बड़ा राजा मानते हैं। यही कारण है कि स्वयं मोह राजा और उसके अधीनस्थ सभी राजा भी बार-बार कर्मपरिणाम राजा के यहाँ जाकर उसकी हर्ष-वृद्धि के लिये अनेक प्रकार के नाटक करते हैं। ये राजा जब वहाँ नाटक करने जाते हैं तब उनमें से कई तो गायक बनते हैं, कई वीणा बजाते हैं और कई भक्ति पूर्वक स्वयं ही मृदंग आदि का रूप धारण कर लेते हैं । संक्षेप में, हे वत्स ! इस संसार-नाटक को चलाने में महामोह आदि राजा कारण बनते हैं और कर्मपरिणाम राजा अपनी पत्नी कालपरिणति के साथ बैठकर निराकुलता के साथ संसार-नाटक को देखकर हर्षित होते हैं । मात्र इन राजानों का ही नहीं बल्कि अन्तरंग राज्य के जो भी अन्य राजा हैं उन सब का स्वामी भी यह कर्मपरिणाम महाराजा ही है। निष्कर्ष यह है कि सुन्दर-असुन्दर, शुभ-अशुभ प्रादि समस्त राजमण्डल का नायक कर्मपरिणाम है, जब कि महामोह तो उसके एक विभाग का नायक है और उसे भी महाराजा की आज्ञा माननी पड़ती है ।[२०-३२]
अन्तरंग लोक के प्राणियों का अच्छा-बुरा करने वाले जो भी हैं उन सब को प्रायः करके प्रवृत्त कराने वाला कर्मपरिणाम महाराजा ही है। निर्वृत्ति नगरी को छोड़कर अन्तरंग प्रदेश में जितने भी नगर या शहर हैं, उनके बाह्य भाग का यही राजा है । इसमें कुछ भी संदेह नहीं है । यहाँ तूने जितने राजा देखे उनका स्वामी यह महामोह है, किन्तु इसका यह स्वामित्व कर्मपरिणाम राजा की प्राज्ञा से है; जब तक उसकी आज्ञा प्रवृत्त है तभी तक स्वामित्व है। जैसे अधीनस्थ राजा कर दिया करते हैं वैसे ही महामोह राजा भी अपने वीर्य (शक्ति) से जो कुछ धन उपाजित करता है, वह सब सिर झुका कर कर्मपरिणाम महाराजा को समर्पित कर देता है। महामोह द्वारा. उपाजित एवं समर्पित धन में से अच्छी-बूरी वस्तुओं का योग्य बंटवारा यह कर्मपरिणाम महाराजा ही करता है। मोहराजा तो युद्ध द्वारा विजय प्राप्त करने में सदा तत्पर रहता है, जब कि कर्मपरिणाम तो भोग भोगने में हो मानन्द मानता है, नाटक देखकर ही हर्षित होता है। विग्रह (युद्ध की तो वह बात ही नहीं जानता। वत्स ! यही कारण है कि कर्मपरिणाम मोहराजा को आज्ञा देता है और वह भक्ति पूर्वक उसका अनुसरण करने में तत्पर रहता है।
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