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प्रस्ताव ४ : भवचक्र नगर के मार्ग पर
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है । इस मोह राजा का सामना करने वाला सन्तोष नामक योद्धा भी इसी नगर में रहता है और मोह राजा की सेना ने इसी नगर को चारों और से घेर रखा है । प्रकर्ष - मामा ! इस मोह राजा की सेना तो यहाँ इस चित्तवृत्ति नगर में है, फिर वह भवचक्र नगर में कैसे हो सकती है ? एक साथ दो स्थानों पर एक ही सेना कैसे रह सकती है ?
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विमर्श - भाई ! ये महामोह राजा आदि अन्तरंग के लोग तो योगी जैसे हैं । इसलिये वे यहाँ भी दिखाई देते हैं और वहाँ भी रह सकते हैं, इसमें कोई विरोध नहीं है, क्योंकि योगियों की तरह ये चाहे जैसे और चाहे जितने रूप धारण कर सकते हैं, दूसरों के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, अन्तर्ध्यान हो सकते हैं और चाहे जहाँ प्रकट हो सकते हैं । इसीलिये ये राजागरण अचिन्त्य शक्ति और माहात्म्य वाले माने जाते हैं । ये अपनी इच्छानुसार कहीं भी आ-जा सकते हैं, अतः इनके लिये कोई ऐसा स्थान नहीं जहाँ ये नहीं रहते हों । हे वत्स ! यह भवचक्र नगर अन्तरंग प्रौर बाह्य सभी प्रकार के लोगों का आधार स्थान है, सभी का इसमें समावेश है, अत: इसे बाह्यलोक भी कह सकते हैं और इसे अन्तरंग लोक भी कहा जा सकता है । प्रकर्ष - तब तो सन्तोष भी वहीं रहता होगा । ऐसे महाभिमानी राजाओं के घमण्ड को चूर-चूर करने वाले महापुरुष जिस भवचक्र नगर में रहते हों, वह नगर तो अवश्य ही दर्शनीय होगा । मुझे तो वह नगर देखने का बहुत कौतूहल हो रहा है । मामा ! मुझ पर कृपा कर वह नगर मुझे अवश्य दिखाइये | चलिये, हम अब उसी नगर में चलें ।
विमर्श - भाई ! जिस कार्य के लिये आये, वह तो सिद्ध हो गया है । हमने विषयाभिलाष मंत्री को देखा है । यह रसना देवी का पिता है, इसलिये उसकी मूलशुद्धि / उत्पत्ति स्थान हमें मालूम हो गया है । रसना के मूल का पता लगाने के लिये हमें राजाज्ञा हुई थी, वह काम अब पूरा हो चुका है, अतः अब व्यर्थ में इधरउधर घूमने से क्या लाभ ? अब हमें अपने नगर वापस लौट जाना चाहिये और जो कार्य पूरा किया है उसकी सूचना दे देनी चाहिये ।
प्रकर्ष - नहीं, मामा ! नहीं, ऐसा न कहिये | आपने भवचक्र नगर का वर्णन कर मेरे मन में इस नगर को देखने का अत्यधिक कौतूहल जाग्रत कर दिया है, अतः ऐसे दर्शनीय नगर को देखे बिना वापस लौट जाना तो किसी भी प्रकार उचित नहीं है । आपको याद ही होगा कि रसना की उत्पत्ति के बारे में पता लगाने के लिये पिताजी ने हमें एक वर्ष का समय दिया था और हमें वहाँ से रवाना हुए अभी केवल शरद् श्रौर हेमन्त ऋतु ही व्यतीत हुई है । वर्तमान समय में
शिशिर ऋतु चल रही
है | देखिये :
शिशिर वर्णन
इस समय प्रियंगु को लताओं पर मञ्जरी (मांजर) खिल रही है ।
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