Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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१७. महामोह के सामन्त
[विमर्श आज प्रसन्न था । महामोह के परिवार, सेनापति, पुत्र-पौत्र आदि का वर्णन करने के बाद प्रकर्ष के प्रश्न करने के पहिले ही उसने महाराज के सामन्तों का वर्णन प्रारम्भ कर दिया ।]
भाई प्रकष ! महामोह राजा के सिंहासन के निकट ही जो राजा बैठे दिखाई दे रहे हैं वे राजा के विशेष अंगभूत प्रमुख पदाति (मंत्री) हैं जिनका संक्षिप्त गुण - वर्णन अब मैं तुम्हें सुनाता हूँ । [४६५]
विषयाभिलाष मंत्री
भद्र ! रागकेसरी के पास जो राजा बैठा दिखाई दे रहा है उसका नाम विषयाभिलाष है । वह सुन्दर स्त्री की कमर में हाथ डाल कर बैठा है मुँह में सुस्वादु सुगन्धित पान चबा रहा है, भ्रमरों के झुण्ड से गुञ्जरित मनोमुग्धकारी सुगन्धी से पूर्ण कमल को लोला पूर्वक बार-बार सूंघ रहा है, अपनी सुन्दरी पत्नी के मुखकमल को एकटक दृष्टि से अपलक देख रहा है, और वोरणा, झांझर और काकली जैसे वाद्यों की मधुर ध्वनि सुनने में जो अत्यधिक आसक्त दिखाई दे रहा है । मानो सारी सृष्टि के पदार्थ उसकी मुट्ठी में ही हों, इस प्रकार पाँचों इन्द्रियों के भोग भोगने में वह दत्तचित्त हो रहा है | भैया ! यह रागकेसरी राजा का मन्त्री है । इसकी प्रसिद्धि हमने पहले भी कई बार सुनी थी और इसी से मिलने हम यहाँ आये हैं । [४६६-४७०] प्रकर्ष ! तुझे याद होगा कि मिथ्याभिमान ने हमें बताया था कि इस विषयाभिलाष के पाँच लड़के हैं जिनके बल पर यह मन्त्री महाबली बनकर सारे संसार को अपने वश में रखता है और सब को अपने समान ही विषय भोगों में गृद्ध बना देता है । देखो, उसके साथ ये पाँच लड़के भी बैठे है । जो-जो प्राणी विषयाभिलाष मंत्री के प्रभाव में हैं वे सभा स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द में आसक्त हो जाते हैं । एक बार इनके जाल में फंस जाने पर प्राणी भूल जाते हैं कि अमुक कार्य करने योग्य है या नहीं ? अमुक विषय उसके लिये हितकर है या अहितकर ? अमुक वस्तु खाने योग्य है या त्यागने योग्य ? और धर्माचार का तो वे हकार ही कर देते हैं । वे तो ऐसे ही मनुष्यों से मित्रता रखना पसन्द करते हैं जो सर्वदा और जो सारे समय विषयों में ही रचा-पचा रहता है तथा पूर्णतया जड़ की भाँति अन्य किसी को न तो देखता है, न किसी से मिलता है और न ही किसी की बात सुनता है । ठीक जड़कुमार की भाँति ही अपना आचरण करते हैं । भद्र ! इसको देखने मात्र से और बुद्धि पूर्वक विचार करने से ऐसा निश्चित जान पड़ता है कि रसना को उत्पन्न करने वाला यह विषयाभिलाष ही है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । यह विशद बुद्धि वाला है, इसलिये अनेक प्रकार की राजनीति
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