Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति भव-प्रपंच कथा
कभी-कभी दुर्दमनीय चेष्टा करते हैं और कभी धमा चौकड़ी मचा देते हैं । ये बच्चे कौन हैं ? उनके नाम क्या हैं ? और उनमें क्या-क्या गुरणं हैं ? यह जानने की मेरी इच्छा है अतः स्पष्टतया वर्णन करें । [ ४२८-४३०]
१. अनन्तानुबन्धी- विमर्श - भाई प्रकर्ष ! प्राचार्यदेवों ने पहले इन सौलहों बच्चों की सामान्य पहिचान कषाय के नाम से कराई है; इन सोलह में जो चार अधिक बड़े दिखाई दे रहे हैं वे महान दुष्ट और स्वभाव से प्रति रौद्र आकार वाले हैं, उनके नाम अनन्तानुबन्धी- क्रोध, मान, माया और लोभ हैं। भैया ! मिथ्यादर्शन सेनापति इन चारों बालकों को स्वात्मभूत अर्थात् श्रपने बच्चों जैसा ही मानता है । ये चारों बच्चे भी बाह्य प्रदेश के लोगों को अपनी शक्ति के प्रयोग से सेनापति के भक्त बना देते हैं । इसका कारण यह है कि जब तक चित्तवृत्ति प्रटवी में ये चारों बच्चे लीला पूर्वक घूमते रहते हैं, तब तक बहिरंग लोक के मनुष्य मिथ्यादर्शन के प्रति अनन्यचित्त होकर, अन्य विद्वानों द्वारा समझाये जाने पर भी उनकी अपेक्षा कर सेनापति की भक्ति पूर्वक उपासना करते हैं । इसके फलस्वरूप इन चारों बालकों के चित्तवृत्ति प्रटवी में विद्यमान होने पर मनुष्य कभी भी भाव पूर्वक तत्त्वमार्ग के सच्चे रास्ते को प्राप्त नहीं कर सकते । इसलिये पूर्व प्रकरण में मिथ्यादर्शन श्राश्रित जो दोष वरिणत किये गये हैं वे सभी दोष बहिरंग के लोगों में भी पाये जाते हैं और ये बालक उसके कारणभूत हैं | |४३१-४३६]*
२. प्रप्रत्याख्यानी - उपरोक्त अनन्तानुबन्धी चार बालकों से कुछ छोटे जो चार बालक उनके पास ही दिखाई देते हैं उन्हें पण्डितवर्ग अप्रत्याख्यानी- क्रोध, मान, माया और लोभ नाम से कहते हैं । ये चारों बच्चे अपनी शक्ति से बहिरंग प्रदेश के लोगों को पाप में प्रवृत्त कराते हैं । यदि कोई पापमार्ग से निकलना चाहे तो उसे ये चारों राकते हैं। अधिक क्या कहूँ ? जब तक ये चारों चित्तवृत्ति में रहते हैं तब तक प्राणी पाप से तिल मात्र भी पीछे नहीं हट सकते । प्रथमोक्त ग्रनन्तानुबन्धी चार बालकों से इनमें इतना अन्तर अवश्य है कि चित्तवृत्ति में इनकी उपस्थिति होने पर भी प्राणी तत्वदर्शन को स्वीकार करता है जिससे उसे कुछ-कुछ सुख अवश्य मिलता है । परन्तु वे किसी प्रकार की विरति (त्याग) या व्रत नियम की प्रतिज्ञा नहीं कर सकते जिससे इस भव में भी संतप्त रहते हैं और परभव में भी पाप कर्मों का संचय कर संसार रूपी गहन जंगल में भटकते रहते हैं । [४४०–४४४] ३. प्रत्याख्यानी - हे प्रकर्ष ! इन आठ बालकों से भी छोटे जो चार बालक दिखाई दे रहे हैं, उन्हें विबुधगरण प्रत्याख्यानो- क्रोध, मान, माया और लोभ के नाम से कथन करते हैं । जब तक ये चारों इस मण्डप के आश्रित हैं तब तक बहिरंग जगत के प्राणी पाप को सर्वथा नहीं छोड़ सकते। जब तक चित्तवृत्ति में ये बालक निवास करते हुए क्रीड़ा करते रहते हैं तब तक प्राणी पाप का कुछ-कुछ त्याग तो भली प्रकार करते हैं, १र उसे सम्पूर्णतः छोड़ नहीं सकते । प्रारणी द्वारा किये गये कुछ-कुछ
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