Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ४ : महामोह के मित्र राजा
५२३
मुकुटों से पूजित होते हैं और जो संसार को भेदकर उसके अन्तिम छोर (मुक्ति) को प्राप्त कर लेते हैं। ऐसी अनेक प्रकार की जो रचनायें संसार में होती हैं, जिससे भिन्न भिन्न प्रकार की अच्छी-बुरी स्थिति को प्राणी प्राप्त करता है, वह सब इस महाबलबान महाराजा नाम और उसके अनुचरों के प्रभाव एवं पराक्रम से ही होता है।
[५१४-५२५] ६. गोत्र-- भद्र ! इसके आगे छठे स्थान पर दो आत्मीय पुरुषों से घिरा हुमा जो जगत्पति महापराक्रमी राजा बैठा है उसका नाम गोत्र है। इन दो पुरुषों में से एक का नाम उच्च गोत्र और एक का नीच गोत्र है । प्राणियों को अच्छे या बुरे गोत्र वाला बनाना इसी राजा का काम है। [५२६-५२७]
७. अन्तराय-भैया ! इसके आगे सातवें स्थान पर पाँच मनुष्यों से घिरा हुआ जो राजा बैठा है, उसे अन्तराय कहते हैं। यह नराधम अपनी शक्ति से बाह्य प्रदेश के लोगों में विघ्नरूप बनकर न तो दान देने देता है, न वस्तुओं का लाभ होने देता है और न उनका भोग-उपभोग करने देता है, पराक्रमी होते हए भी निर्बल बना देता है अर्थात् प्राणी अपने वीर्य का उपयोग नहीं कर सकता और प्रत्येक कार्य में विघ्न उपस्थित करता है । इसके पाँच पुरुषों (दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय) के प्रभाव से यह प्राणियों की ऐसी गति बनाता है। [५२८-५२९]
भाई प्रकर्ष ! मैंने संक्षेप में इन सातों राजाओं और उनके परिवार के सम्बन्ध में तुझे बताया । वैसे इनमें से प्रत्येक की कितनी शक्ति है और वे कैसे-कैसे काम कर सकते हैं. इस सम्बन्ध में यदि विस्तार से कहूँ तो मेरा पूरा जीवन समाप्त हो जाय तब भी वह पूरा नहीं हो सकता । [५३०-५३१]
मामा के गम्भीर वचन सुनकर प्रकर्ष का चित्त अत्यधिक हर्षित हया और वह बोला-मामा ! आपने बहुत अच्छा किया। मैं मानता हूँ कि इन सब राजानों का वर्णन कर आपने मुझे मोह के पिञ्जरे के छुड़ा लिया है। [५३२-५३३]
हर्षित प्रकर्ष ने अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिये विमर्श से पुनः पूछा-मामा ! मेरे मन में एक शंका उठ रही है, यदि आपकी आज्ञा हो तो पूछकर निर्णय करूं ? [५३४] मित्र राजाओं का विशिष्ट परिचय .
प्रकर्ष के प्रश्न पर विमर्श ने संतोष व्यक्त किया और प्रसन्नता से कहाभद्र ! तू जो कुछ पूछना चाहता है उसे प्रसन्नता पूर्वक पूछ । तब प्रकर्ष ने पूछामामा ! आपने जिन सात राजाओं का वर्णन किया उनके विषय में मुझे विस्मयकारक अनेक नवीनताएं लग रही हैं । मण्डप में बैठे हुए इन्हें ध्यान पूर्वक देखने पर भी मुझे ये राजा तो दिखाई देते हैं किन्तु उनके परिवार दिखाई नहीं देते । अधिक
* पृष्ठ ३७६
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