Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ४ : महामोह के मित्र राजा
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में पहचाना ही जा सकेगा। उसके निकट जाने पर वे ही धावड़े, आम या खैर अलग-अलग दिखाई देंगे। तब 'यह धावड़ा है, यह आम है, ऐसा कहा जायगा, पर यह वृक्ष है ऐसा कोई नहीं कहेगा । यद्यपि धावड़ा, आम आदि वृक्ष से भिन्न नहीं हैं, पर सामान्य रूप से वे वृक्ष होने पर भी विशेष रूप से आम आदि भिन्न-भिन्न हैं। काल की अपेक्षा से कहें तो अापने दो वस्तु देखी है ऐसा कहा जा सकता है, क्योंकि भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न रूप देखें हैं। एक बार वृक्ष देखे और थोड़ी देर बाद माम आदि देखे । काल के भेद से वस्तु-भेद अवश्य हुआ, पर वस्तुत: वे भिन्न नहीं हैं। जो द्रव्य वास्तव में अभिन्न होते हैं वे कालभेद से भी कभी भिन्न-भिन्न दिखाई नहीं देते । जो सर्वथा अभिन्न हैं वे सर्व काल में अभिन्न ही रहते हैं। [५४६-५५१]
यद्यपि सामान्य और विशेष के स्वभाव, गुण, प्रकृति प्रादि अभिन्न होते ह, फिर भी चार विषयों में उनमें भिन्नता होती है । संख्या, संज्ञा (नाम), लक्षण और कार्य । इन चारों के कारण विशेष और सामान्य से भिन्नता हो जाती है । जो तत्त्वज्ञान भेदाभेद परिस्थिति को स्वीकार करता है अर्थात् जहाँ स्याद्वाद शैली को अपनाने की विशालता होतो है, वहाँ सामान्य से विशेष को संज्ञा, संख्या प्रादि की अपेक्षा से भिन्न बताने में कोई दोष नहीं है । [५५२-५५३]
__ इन चारों बातों में विशेष सामान्य से भिन्न किस प्रकार होता है ? वह बताता हूँ, सुनो । (१) वृक्ष नाम से वह संख्या की अपेक्षा से एक ही है जब कि खैर, ग्राम आदि भिन्न-भिन्न रूपों में अनेक है । (२) संज्ञा, सामान्य रूप से वृक्ष को वृक्ष के नाम से ही पहचाना जाता है, जब कि विशेष रूप से आम, खैर, धावड़ा, नीम आदि भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। (३) लक्षण, सामान्य रूप से सभी वृक्ष हरे-भरे समान लक्षण वाले ही लगते हैं, किन्तु विशेष रूप से आम वृक्ष के जैसे पत्ते, मंजरी आदि होते हैं, वैसे ही धावड़े या नीम में नहीं होते, अतः लक्षण (पहचान) में भी वे सामान्य से भिन्न हैं। (४) कार्य, सामान्यतः सभी वृक्षों का कार्य है शीतल छाया आदि प्रदान करना, किन्तु आम के वृक्ष में ग्राम लगता है और नीम के वृक्ष में नींबोली, अतः कार्य की अपेक्षा से भी विशेष सामान्य से भिन्न है। इन सब भेदों को देखते हुए जब सामान्य का व्यवहार होता है तब मुख्यतया सामान्य ही दृष्टिगोचर होता है और विशेष गौरण हो जाने से वह दृष्टिगोचर नहीं होता । इसी प्रकार जब विशेष का व्यवहार होता है तब मुख्यतया विशेष ही दृष्टिगोचर होता है और सामान्य गौरण हो जाने से वह दृष्टिगोचर नहीं होता । जैसे, शास्त्र श्रुतस्कन्ध) एक है पर उसमें अध्ययन, उद्देशक आदि अनेक हैं (संख्या को अपेज्ञा से भिन्नता) । शास्त्र का नाम अलग है और प्रत्येक अध्ययन के भी नाम अलग-अलग हैं (नाम की अपेक्षा से भिन्नता)। शास्त्र के सभी पृष्ठ समान रूप से हैं पर प्रत्येक पृष्ठ पर भिन्न-भिन्न विषय हैं (लक्षण की अपेक्षा से भिन्नता)। और, शास्त्र का कार्य सामान्य रूप से ज्ञान
* पृष्ठ ३६०
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