Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
प्रस्ताव ४ : महामोह के सामन्त
५१६
(उठा-पटक) द्वारा रागकेसरी का पूरा राज्य-तन्त्र यही चलाता है * तथापि अन्य किसी के बुद्धि प्रयोग से यह कदापि पराजित नहीं होता । बाह्य प्रदेश के मनुष्य तभी तक विद्वान् बनकर अपने व्रतों में दृढ़ रह सकते हैं जब तक कि यह विषयाभिलाष मन्त्री उन्हें न उकसाता । परन्तु, जैसे ही यह महाबुद्धिशाली प्रधान अपनी शक्ति का प्रयोग करने लगता है वैसे हो वे पामर प्राणी हतवीर्य होकर छोटे बच्चों की तरह निर्लज्ज बनकर अपने व्रतों को छोड़कर इसके दास बन जाते हैं । यहाँ जितने भी राजा हैं उन सब का प्राणियों पर जो साम्राज्य है उसकी वृद्धि यह विषयाभिलाष मंत्री ही करता है। अतः बाह्य प्रदेश के प्राग्गियों के लिये यह मन्त्री बहुत ही दुःखदायक है, क्योकि बहिरंग लोक के प्राणी इसकी आज्ञा से ही पाप करते हैं और पाप के परिणाम स्वरूप वे इस भव और परभव में दुःख प्राप्त करते हैं। यह विषयाभिलाष नीति-मार्ग में कुशल, निर्दोष पुरुषार्थी, मनुष्यों के मन को भेदन करने के उपायों में अति चतुर, सर्व यथार्थता को पहचानने वाला, विग्रह या सन्धि कराने के काम में प्रवोरण, विकल्पजाल फैलाने में निपुण तथा अनेक विषयों में कुशल है । सम्पूर्ण संसार में इसके समान अन्य कोई मंत्री है ही नहीं । अधिक क्या कहूँ ? संक्षेप में, जब तक राज्य-तन्त्र (पद्धति) के कामकाज को चलाने वाला यह महामंत्री है तभी तक इन राजाओं का राज्य चल रहा है, अर्थात् इस मन्त्री के बिना इन राजाओं के राज्य में चारों तरफ अन्धेरा फैल जाता है। [४७१-४८४]
प्रकर्ष ने हर्षित होकर कहा-बहुत अच्छा मामा ! आपने बहुत ही सुन्दर निर्णय बताया है, अर्थात् आपकी बात सौ टका सच्ची है,क्योंकि यह तिलतुष के तृतीयांश जितना भी बदल सके ऐसा प्रतीत नहीं होता है । यह महामन्त्री आपके कथनानुसार हो है इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है। क्योंकि, जब मैंने इसे पहिले देखा था तभी इसकी प्राकृति को देखकर मेरे मन में विचार उठा था कि यह मन्त्री ऐसा ही होना चाहिये और अब आपने इसके जिन समस्त गुणों का वर्णन किया है वे पूर्णतः मेरे विचारों के समर्थक ही हैं । [४८५-४८६]
विमर्श-तेरे जैसा चतुर मनुष्य किसी को देखकर ही उसके गुण-अवगुणों को जान जाय, इसमें कौनसा आश्चर्य है ? क्योंकि -
ज्ञायते रूपतो जातिर्जातेः शीलं शुभाशुभम् । ___ शीलाद् गुणाः प्रभासन्ते, गुणैः सत्वं महाधियाम् ॥
अर्थात् बुद्धिशाली मनुष्य को प्राणी के रूप से उसकी जाति का पता लग जाता है, जाति के जानने पर उसके अच्छे-बुरे व्यवहार का पता लग जाता है, व्यवहार से गुण और गुण से सत्व का पता लग जाता है । [४८८]
__भाई ! इस विषयाभिलाष महामन्त्री को देखकर तू ने इसके ही गुण जाने हों, यही नहीं. परन्तु तू ने अन्य राजाओं को देखकर उनके गुण-अवगुण भी जान लिये * पृष्ठ ३७६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org