Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
भ्रमर गुजार से अधिक मुदु गीत से विनोद कर रही है । इस स्त्री के आलिंगन एवं मुख-चुम्बन में लुब्ध कमनीय प्राकृतिवाला यह कौन राजा है ? [३३६-३३६]
विमर्श - भाई प्रकर्ष ! संसार में महान आश्चर्य उत्पन्न करने वाला उद्दाम पौरुष वाला जगत् प्रसिद्ध यह मकरध्वज राजा है । ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व और कृतित्व वाले पुरुष को तुमने अभी तक नहीं पहचाना. तब तो तू अभी तक कुछ भी नहीं समझ पाया । भैया ! इसने संसार में कैसे-कैसे विस्मयोत्पादक काम किये हैं, सुन–पार्वतो के लग्न के समय इसने संसार के परमेष्ठि पितामह ब्रह्मा से बालविप्लव (वीर्य स्खलित) करवाया। इन्हीं ब्रह्मा की तपस्या भंग करने जब इन्द्र ने तिलोत्तमा को भेजा तब इसने उस अप्सरा को चारों ओर से देखने में लुब्ध ब्रह्मा को अपनी तपस्या के फलस्वरूप पांच मुख बनाने को बाध्य किया। विश्व व्यापी कृष्ण जैसे व्यक्ति को इसने राधा जैसी ग्वालिन के पांव पड़ने को विवश किया। लोक प्रसिद्ध शिव को तो इसने विरह-कातर बनाकर ऐसा बेहाल किया कि उन्हें पार्वती को अपने प्राधे शरीर में ही समाहित कर अर्धनारीश्वर का रूप बनाना पड़ा ।* यही महादेव जब नन्दनवन में कामदेव की स्त्री रति को क्षुब्ध करने की लालसा से बृहलिंग को उद्दीप्त कर रहे थे तब इस मकरध्वज ने इनसे अनेक नाटक करवाये । इसने शंकरं के मन में सूरत-क्रीडा की ऐसी तृष्णा जागृत करदी कि वे एक हजार वर्ष तक विषय सेवन-रत रहें, उन्हें ऐसा विवश कर दिया । अन्य भी बहुत से देव-दानव और मुनियों को इसने अपने वश में कर दास जैसा बना लिया है। इसके पास अपने महा पराक्रम से प्राप्त आत्मीभूत तीन अनुचर हैं । ऐसे इस मकरध्वज की आज्ञा का उल्लंघन करने में इस त्रैलोक्य में कौन समर्थ है ? [३४०-३४६] मकरध्वज के अनुचर वेद-त्रय
प्रकर्ष ! मकरध्वज के साथ जो तीन पुरुष हैं उनमें से प्रथम का नाम पूवेद (पुरुष वेद है, जो महान पौरुष-शक्तिसम्पन्न और प्रसिद्ध है। इसकी शक्ति से बहिरंग प्रदेश के मनुष्य पर-स्त्री में आसक्त होकर अपने कुल को कलंकित करते हैं । [२५०-३५१]
दूसरा पुरुष जो महान तेजस्वी दिखाई देता है और जिसने सम्पूर्ण त्रैलोक्य को भ्रष्ट कर रखा है उसे विद्वान् प्राचार्यगण स्त्रीवेद के नाम से पुकारते हैं। इसके प्रताप से स्त्रियाँ लाज शर्म और अपने कुल की मर्यादा का त्याग कर पर-पुरुष में प्रासक्त होती हैं। [३५२-३५३]
. तीसरे पुरुष का नाम षण्ढवेद (नपुंसक वेद) है। यह भी अपने तेज से बहिरंग लोगों को त्रस्त करता है । इसमें इतनी शक्ति है कि जिसे जानना भी बहत कठिन है, क्योंकि नपुसक संसार में अत्यधिक निन्दा के पात्र बनते हैं। इसके सम्बन्ध में अधिक वर्णन करना व्यर्थ है ।
* पृष्ठ ३६६
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