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प्रस्ताव ४ : भौताचार्य कथा तेरी भी ऐसी ही गति होगी।' इतना कहने पर भी जब वह दूर नहीं हुई तब वैद्य उसे भी लकड़ी से पीटने लगा।
यह सब देखकर शान्तिशिव ने विचार किया कि, अरे! मुझे भट्टारक जी के लिये जो औषधि लेनी है, वह तो मैंने सुन ही ली है, अब वैद्य से पूछने की आवश्यकता ही क्या है ? (शान्तिशिव ने वैद्य से बिना पूछे ही उपरोक्त घटना देखसुनकर मन में यह निर्णय कर लिया था कि जो न सुने उसे ,नाने के लिये खम्भे से बाँधकर लकड़ी से मारना ही औषधि है ।)
पश्चात् शान्तिशिव वैद्य के घर से निकलकर एक शिवभक्त सेठ के घर गया । उससे एक रस्सी माँगी । सेठ ने एक सण की रस्सी दी तो शान्तिशिव ने कहा कि, इसको रहने दो मुझे तो कठोर मूज की मजबूत रस्सी चाहिये । शिवभक्त ने उसे मूंज की मोटी रस्सी देते हुए पूछा-भट्टारक ! इस रस्सी की क्या आवश्यता पड़ गई?
शान्तिशिव ने कहा-इस रस्सी से हमारे माननीय सुमहीत नामधन्य सदाशिव भट्टारक जी की औषधि करनी है।
रस्सी लेकर शान्तिशिव भट्टारक के मठ में आ गया। मठ में गुरु को देखते ही उसने क्रोध से भौंहे चढ़ायी, मुह लाल-पीला किया और मठ के बीच खड़े एक खम्भे से रोते-चिल्लाते भट्टारक को उस रस्सी से बांध दिया। फिर एक मोटा लट्ठ (लकड़ी) लेकर गुरु को खूब जोर से मारने-पीटने लगा।
इधर शिवभक्त सेठ ने विचार किया कि भट्टारक के लिये औषधि बनायी जा रही है, अतः मैं भी मठ में जाऊँ । कुछ आवश्यकता होने पर मैं भी सहयोग कर सगा। ऐसा सोचकर सेठ भी मठ में आया । मठ में घुसते ही सेठ ने देखा कि शान्तिशिव निर्दयता से आचार्य को मार रहा है । तब उसे रोकते हुए उन्होंने कहा'अरे शान्तिशिव ! यह क्या कर रहा है ? प्राचार्य को क्यों मार रहा है ?' इस पर शान्तिशिव ने वैद्य की नकल उतारते हुए कहा -'मैं इतना प्रयत्न कर रहा हूँ तब भी यह पापी कुछ भी सुनता ही नहीं।' * उस समय तक सदाशिव प्राचार्य मार खा-खाकर मृतप्राय जैसे हो गये थे और अत्यन्त भयंकर क्रन्दन कर रहे थे। प्राचार्य की ऐसी विपन्न दशा देखकर शिवभक्तों ने हाहाकार करते हुए शान्तिशिव को रोका।
इस पर शान्तिशिव ने दुबारा वैद्य की नकल उतारते हुए कहा-'मैं इतना अधिक प्रयत्न कर रहा हूँ फिर भी यह दुरात्मा सुनता ही नहीं । अभी तो मुझे इसे और मारना पड़ेगा। तुम सब अलग हट जाओ, अन्यथा तुम्हारा भी यही हाल होगा।' उतने पर भी जब शिवभक्त उसे रोकने लगे, तब उसने शिवभक्तों पर भी लाठियाँ जमा दी। परन्तु, शिवभक्त अधिक थे अतः 'इसके हाथ से लकड़ी छीन लो' कहते हुए उन्होंने मिलकर उसे पकड़ा, लकड़ी छीन ली और यह सोचकर कि शान्तिशिव
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