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प्रस्ताव : ४ वेल्लहल कुमार कथा
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के समान लाल हो रहा है, सीने में से धक-धक की आवाज आ रही है, नाडी तेज चल रही है, बाह्य चमड़ी जल रही है और हाथ अंगारे जैसे हो रहे हैं । ये सारे चिह्न ज्वर वृद्धि के हैं। अतः अब आप भोजन न करें और पवन रहित बन्द कमरे में जाकर आराम करें। लंघन (उपवास) करें, गर्म पानी पीयें और अजीर्ण तथा ज्वर को मिटाने के जो भी उपाय हैं, उन सब का सम्यक् प्रकार से सेवन करें। यदि आप इसमें तनिक भी उपेक्षा करेंगे तो आपको तुरन्त ही सन्निपात हो जायगा।
वैद्यपुत्र जब कुमार को रोग-शमन के उपाय बता रहा था तब भी कुमार की दृष्टि तो परोसे हए भोज्य पदार्थों पर ही जमी हुई थी और सोच रहा था कि यह खाऊगा, वह खाऊंगा । उसका अन्तःकरण भोज्य पदार्थों पर इतना आसक्त हो गया था कि वैद्यपुत्र द्वारा उसके हित में दिये हुए उपदेश को सुनने की ओर भी उसने ध्यान नहीं दिया। समयज्ञ, कुमार का हाथ पकड़-पकड़ कर उसे खाने से रोक रहा था तब भी वेल्लहल तो उसकी उपस्थिति में, उसके रोकने पर भी खाता ही रहा । उसे वैद्यपुत्र की उपस्थिति की भी शर्म नहीं आई । यद्यपि वेल्लहल को पहले ही प्रबल अजीर्ण था ही, अतः ज्वर की तीव्रता बढ़ने से वह जो भी ग्रास मुह में डालता, उसे गले के नीचे बल पूर्वक उतारता । ऐसी दशा में भी वह जबरदस्ती खाये जा रहा था। परिणाम स्वरूप उसका हृदय उछलने लगा, पेट में गड़बड़ होने लगी, भक्षित भोजन मुंह में आने लगा और अन्त में वमन होने लगी, जिससे सामने पड़ा हुआ भोजन भी वमन मिश्रित हो गया। ऐसी अत्यन्त दयनीय अवस्था में भी वेल्लहल कुमार विपरीत ही सोचने लगा कि 'मेरा शरीर भूख से पीड़ित है, मेरा पेट खाली है जिसमें वायु घुस गयी है उसी से यह उल्टी हुई है, अन्यथा उल्टी कैसे हो सकती है ? उल्टी से पेट अधिक खाली हो जायगा तो उसमें अधिक हवा भर जायगी, इससे मुझे अधिक व्यथा होगी। इसीलिये मुझे दुबारा डटकर भोजन कर पेट को पूरा भर लेना चाहिये, जिससे कि वह खाली न रहे और उसमें हवा नहीं भरे ।' उस समय दूसरा भोजन तो उसके सामने परोसा हुआ था नहीं, अतः कुमार निर्लज्ज होकर सब लोगों के देखते हुए वह वमन मिश्रित भोजन ही करने लगा। [१-३]
ऐसे निर्लज्ज और हानिकारक व्यवहार को देखकर समयज्ञ वैद्यपुत्र घबराया और चिल्लाते हुए उसने कुमार से कहा- देव ! देव !! आपको कौए जैसा व्यवहार करना योग्य नहीं है । प्रभो ! आप अपने इतने बड़े राज्य, सुन्दर शरीर
और चन्द्र जैसे निर्मल यश को मात्र एक दिन के भोजन के लिए व्यर्थ में ही गंवा रहे हैं। मेरे प्रभो ! आपके सामने पड़ा हुआ यह वमन मिश्रित भोजन * अपवित्र, दोषपूर्ण, उद्व गकारक और निन्दनीय है, अतः प्रापको इसका भक्षण करना कदापि उचित नहीं है । देव ! आपके शरीर में पहले से ही दुःखदायी अनेक व्याधियां विद्यमान हैं, फिर भी आप ऐसा वमन मिश्रित दोषपूर्ण भोजन करेंगे तो वह आपकी सर्व व्याधियों * पृष्ठ ३५१
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