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उपमिति-भव-प्रपंच कथा कंटकमर्दक आदि-आदि । भाई प्रकर्ष ! तुझे कितने नाम गिनाऊं ? ये सब भिन्न-भिन्न अभिप्राय को धारण करने वाले होने से भिन्न-भिन्न नाम से पहचाने जाने वाले पाखण्डी हैं। इनके (१) देव-तत्त्व भिन्न होने से, (२) वाद (कारण) तत्त्व में भेद होने से, (३) वेष-भिन्न होने से, (४) कल्प (प्राचार) भेद होने से, (५) मोक्षविचार भिन्न होने से, (६) विशुद्धि विचार में भिन्नता होने से और (७) खाने-पीने के रीति रिवाज में भिन्नता होने से एक दूसरे से भिन्न-भिन्न हैं । इनका संक्षिप्त विवेचन निम्न है ।
[२८२-२६३] १. देव-उपरोक्त मत-मतान्तर वाले कोई शिव को, कोई इन्द्र को, कोई चन्द्र को, कोई नाग को कोई बुद्ध को, कोई विष्णु को और कोई गणेश को देव मानते हैं । और, इस प्रकार जिसके मन में जैसा आया वैसे ही भिन्न-भिन्न देवताओं की मान्यता कर उनकी पुजा करने लगे। [२६४]
२. वाद-इन में अनेक प्रकार के वाद हैं। कोई ईश्वर को कर्ता मानते हैं, कोई ईश्वर की आवश्यकता ही नहीं मानते, कोई नियति को प्रधानता देते हैं, कोई कर्म पर सृष्टि का विकास मानते हैं, कोई स्वभाववाद को प्रधानता देते हैं और कोई काल को मुख्यता देते हैं । इस प्रकार जगत्कर्ता के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न विचार-धाराओं के कारण भिन्न-भिन्न रूपों में अनेक मत-मतान्तर हैं। [२६५]
३. वेष-कुछ त्रिदण्डी का वेष धारण करते हैं, कुछ हाथ में कमण्डलु धारण करते हैं, काई सिर का मुण्डन कराते हैं, कोई वल्कल धारण करते हैं और कोई भिन्न-भिन्न रंग के सफद, पीले, गेरुए आदि कपड़े पहनते हैं । इस प्रकार वेष की भिन्नता प्रत्येक मत में दिखाई देती है। [२६६]
४. कल्प–प्रत्येक तीथिकों में (मत वालों में) खाने-पीने को वस्तुओं और भक्ष्य-अभक्ष्य के बारे में भेद होने से भी ये मत अलग-अलग हैं। [२९७
५. मोक्ष-सुख-दुःख से रहित मोक्ष को भी ये पाखण्डी मत भिन्न-भिन्न रूप से मानते हैं। कोई मोक्ष को शून्य रूप मानते हैं, कोई निवृत्ति रूप एवं अभेद स्वरूप मानते हैं, कोई उपाधि-त्याग रूप मानते हैं, कोई बुझे हुए दीपक के समान सुख-दुःख रहित मानते हैं । ऐसे मोक्ष के भी विचित्र प्रकार के लक्षण भिन्न-भिन्न मत वाले स्थापित करते हैं। [२६८]
६. विशुद्धि-प्राणी के अमुक पाप की विशुद्धि अमुक प्रकार के प्रायश्चित्त से होगी, इसमें भी प्रत्येक मत के अलग-अलग विचार हैं। जिसके मन में जो पाया वही विशुद्धि का मार्ग बता दिया और कह दिया कि इसका अनुसरण करने से प्राणी पाप से मुक्त हो जायगा। २६६]
७. वृत्ति-कुछ जंगल के कन्दमूल फल खाकर निर्वाह करते हैं, कुछ अनाज खाकर निर्वाह करते हैं, कुछ अमुक-अमुक पदार्थों के सेवन का ही उपदेश देते हैं। यों प्रत्येक मत की निर्वाह-वृत्ति भी भिन्न-भिन्न है। [३००]
कूदृष्टि की शक्ति-सामर्थ्य से शुद्ध धर्म से बहिष्कृत होकर ये पामर प्राणी इस भवसमुद्र में भटकते हैं, डोलते रहते हैं। [३०१]
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