Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति भव-प्रपंच कथा
किस प्रयोजन से गई यह भी बताऊँगा । वह सब वृत्तान्त संसारी जीव ने अभी जो सुनाया वह सब तेरी समझ में आ गया होगा ?
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अगृहीत संकेता- हाँ, प्रियसखि ! अच्छा हुआ जो तूने मुझे इस सम्बन्ध में याद दिला दिया। अब मैंने यह वृत्तान्त भलीभांति समझ लिया है ।
तब प्रज्ञाविशाला ने संसारी जीव से कहा - भद्र ! जिस समय राजा नरवाहन के समक्ष विचक्षणाचार्य उपरोक्त विमर्श और प्रकर्ष का वृत्तान्त सुना रहे थे और तू भी वहीं रिपुदारण के रूप में उस सभा में बैठा यह सब सुन रहा था, क्या उस समय तुझे अविवेकिता का पूर्व-चरित्र ज्ञात था ? क्या तुझे मालूम था किनन्दिवर्धन के भव में तेरे मित्र वैश्वानर की माता यह अविवेकिता ही थी जो उस उस समय तेरो धाय माता थी ? क्या तुझे यह भी विदित था कि यही अविवेकिता रिपुदारण के भव में तेरे मित्र शैलराज की माता थी ? या उस समय तुझे इस सन्दर्भ में कुछ भी ज्ञात नहीं था ?
उत्तर में संसारी जीव ने कहा- भद्रे ! मुझे उस समय इस सन्दर्भ में कुछ भी ज्ञात नहीं था । उस समय ऐसा कहा जाता था कि मेरा एक के बाद एक अनेक अनर्थ-परम्परा में फँसने का कारण मेरा अज्ञान ही था । उस समय मैं तो केवल यही समझता था कि ये प्राचार्य मेरे पिता को कोई लालित्यपूर्ण कथा सुना रहे हैं । उस कथा के रहस्य को जैसे यह अगृहीत संकेता अभी नहीं समझ रही है वैसे ही मैं भी उस समय नहीं समझा था ।
गृहीत संकेता- - तब क्या इस कथा में कोई विशेष रहस्य है ? क्या कोई गहन भावार्थ इसमें छिपा हुआ है ?
संसारी जीव- हाँ, इसमें गहन भावार्थ छिपा है । मेरे चरित्र में अधिकांशतः एक भी वाक्य गूढार्थ रहित नहीं है । अतः तुम्हें इस कथा को मात्र सुनकर ही संतोष नहीं कर लेना चाहिये, परन्तु इसके गूढार्थ को भी समझना चाहिये । यद्यपि ध्यानपूर्वक सुनने से इसका गूढार्थ स्पष्ट रूप से समझ में आ जाता है तथापि, हे गृहीतसता ! जिस स्थान का भावार्थ तुम्हें समझ में नहीं आये, उसके सम्बन्ध में तुम्हें प्रज्ञाविशाला से पूछ लेना चाहिये । यह मेरे वचनों का रहस्य ठीक से समझती है ।
कहो ।
गृहीतसकेता- ठीक है, ऐसा ही करूँगी । अभी तो अपनी प्रस्तुत कथा
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विचक्षणाचार्य ने जैसे राजा नरवाहन और सभा को कथा सुनाई थी उसी प्रकार संसारी जीव ने अगृहीतसंकेता और प्रज्ञाविशाला को सुनाते हुए सदागम के समक्ष अपनी कहानी आगे बढायी ।
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